Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Classic Header

{fbt_classic_header}

Top Ad

ब्रेकिंग :

latest

Ads

Girl in a jacket

जेपी आंदोलन: सम्पूर्ण क्रांति की पुकार

"यह क्रांति केवल व्यवस्था परिवर्तन की नहीं, मूल्य और चरित्र की भी होनी चाहिए..." — जयप्रकाश नारायण 1970 के दशक का भारत उथल-प...


"यह क्रांति केवल व्यवस्था परिवर्तन की नहीं, मूल्य और चरित्र की भी होनी चाहिए..." — जयप्रकाश नारायण

1970 के दशक का भारत उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था — महँगाई चरम पर थी, बेरोजगारी बेकाबू थी, और राजनीतिक नेतृत्व पर जनता का भरोसा डगमगा चुका था। ऐसे समय में एक आवाज उठी जिसने युवाओं के हृदय को झकझोर दिया। यह आवाज थी लोकनायक जयप्रकाश नारायण की, जिन्होंने 1974 में "सम्पूर्ण क्रांति" का आह्वान किया।

आंदोलन की पृष्ठभूमि: व्यवस्था से मोहभंग

जेपी आंदोलन की नींव बिहार से पड़ी। पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने भ्रष्टाचार, शैक्षिक कुप्रबंधन और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाई। लेकिन जल्द ही यह आंदोलन राष्ट्रीय स्वरूप ले बैठा। जयप्रकाश नारायण, जो पहले ही राजनीति से संन्यास ले चुके थे, छात्रों की मांगों से प्रेरित होकर पुनः सार्वजनिक जीवन में लौटे और उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।

उन्होंने इसे केवल सरकार विरोधी आंदोलन के रूप में नहीं, बल्कि एक 'मूल्य आधारित सामाजिक-राजनीतिक क्रांति' के रूप में देखा। 'सम्पूर्ण क्रांति' का अर्थ था — राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और नैतिक क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन।

दिल्ली की सत्ता की नींव हिल गई

जेपी आंदोलन से इंदिरा गांधी की सरकार की नींव हिलने लगी। आंदोलन को विशाल जनसमर्थन मिला, खासकर युवाओं, छात्रों और मजदूर वर्ग से। बड़े-बड़े जनसमूहों के कारण सरकार असहज हुई और 25 जून 1975 को देश पर आपातकाल (Emergency) थोप दिया गया — जिसे भारत के लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय अध्याय कहा जाता है।

जेपी को बंदी बनाया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई, नेताओं को जेल में डाला गया, लेकिन आंदोलन की चिंगारी बुझी नहीं। उसी चिंगारी से 1977 में जनता पार्टी का उदय हुआ और पहली बार कांग्रेस को केंद्र से सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

आंदोलन की विरासत और आज की प्रासंगिकता

जेपी आंदोलन भारत में वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत का प्रतीक बना। इस आंदोलन से निकलने वाले नेताओं — अटल बिहारी वाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी — ने दशकों तक भारत की राजनीति को प्रभावित किया।

आज जब भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अनुत्तरदायित्व, और नैतिक मूल्यों का ह्रास फिर चिंता का विषय है, तब जेपी की सम्पूर्ण क्रांति की पुकार हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र केवल वोट से नहीं, जागरूक नागरिक भागीदारी से भी चलता है।

"सत्ता परिवर्तन से अधिक आवश्यक है सोच और संस्कार का परिवर्तन।" — जयप्रकाश नारायण

निष्कर्ष: क्रांति अभी अधूरी है

जेपी आंदोलन केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है — कि जब जनता जागे तो सत्ता को जवाब देना पड़ता है। सम्पूर्ण क्रांति केवल नारे नहीं थे, वो एक नैतिक, वैचारिक और संवैधानिक आंदोलन था।

आज भी जब हम जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही की मांग करते हैं, जब हम शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार चाहते हैं, जब हम जाति, धर्म और वर्ग की राजनीति से ऊपर उठकर 'भारत' की बात करते हैं — तब हमें जयप्रकाश नारायण की 'सम्पूर्ण क्रांति' की परिकल्पना की याद आती है।


📰 भरोसेमंद खबरें, विश्लेषण और ज़मीनी हकीकत — अब बस एक क्लिक दूर!

👉 हमारे WhatsApp चैनल से जुड़ें और ताज़ा अपडेट सबसे पहले पाएं:

🔗 https://whatsapp.com/channel/0029VaOdIG1KgsNw0WURCY0T

📈 यह लेख निम्नांकित SEO Keywords से संबंधित है:

  • जेपी आंदोलन
  • सम्पूर्ण क्रांति
  • जयप्रकाश नारायण
  • 1974 आंदोलन
  • आपातकाल 1975
  • भारतीय राजनीति का इतिहास

🔗 यह भी पढ़ें:

कोई टिप्पणी नहीं

Girl in a jacket