🛑 इमरजेंसी 1975: लोकतंत्र का अपहरण -शुभांशु झा | जून 24, 2025 जब लोकतंत्र पर पड़ी काली छाया 25 जून 1975 की रात, जैसे ही लोग अपने-अप...
🛑 इमरजेंसी 1975: लोकतंत्र का अपहरण
-शुभांशु झा | जून 24, 2025
जब लोकतंत्र पर पड़ी काली छाया
25 जून 1975 की रात, जैसे ही लोग अपने-अपने घरों में नींद में खोए थे, दिल्ली में सत्ता के गलियारों में लोकतंत्र की गर्दन दबोच ली गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करवाई। अगले दिन सुबह देश को एक नई हकीकत में जगाया गया — जिसमें न समाचार पत्र स्वतंत्र थे, न विचार, न ही विपक्ष ज़िंदा।
📜 कारण: जेपी आंदोलन और न्यायपालिका की चुनौती
आपातकाल की पृष्ठभूमि में दो बड़े कारण थे:
- राजनैतिक दबाव: जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहा सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन इंदिरा सरकार के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका था। छात्रों, युवाओं और विपक्षी दलों का जनसैलाब सत्ता के खिलाफ खड़ा हो गया था।
- न्यायिक संकट: 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को भ्रष्ट आचरण के आधार पर अवैध घोषित कर दिया और उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी। यह निर्णय प्रधानमंत्री की वैधता पर सीधा हमला था।
इन दोनों घटनाओं के बाद इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए वह मार्ग चुना जो लोकतांत्रिक नहीं, बल्कि निरंकुश था।
📵 आपातकाल के प्रभाव: 21 महीने की घुटन
- सेंसरशिप: मीडिया पर प्रतिबंध, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे अखबारों की हेडलाइन तक खाली छोड़ी गई।
- गिरफ्तारियाँ: 1 लाख से अधिक लोगों को मीसा और डीआईआर जैसे काले कानूनों के तहत बिना मुकदमे के जेल में ठूंस दिया गया।
- संविधान में संशोधन: 42वां संशोधन लाया गया जिसने संविधान की मूल संरचना तक को खतरे में डाल दिया।
- जबरन नसबंदी अभियान: संजय गांधी के निर्देश पर लाखों लोगों की जबरन नसबंदी की गई — विशेषकर गरीबों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया।
साहित्यकार सुदामा पांडे ‘धूमिल’ ने लिखा था:
एक आदमी रोटी बेलता है,
एक आदमी रोटी खाता है,
एक तीसरा आदमी भी है,
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है,
वह सिर्फ रोटी से खेलता है,
मैं पूछता हूँ —
‘यह तीसरा आदमी कौन है?’
‘मेरे देश की संसद मौन है’
⚖️ लोकतंत्र की पुनः स्थापना
जनता की अदालत में फैसला होना था। 1977 के आम चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी को करारी हार मिली और जनता पार्टी सत्ता में आई। यह भारत के लोकतंत्र की अद्भुत विजय थी — जब लोगों ने वोट की चोट से सत्ता बदल दी।
📚 आपातकाल से सबक़: लोकतंत्र अधिकार है, उसे जिंदा रखना कर्तव्य
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय है, लेकिन यह हमें यह भी सिखाता है कि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए नागरिकों को जागरूक और मुखर रहना होगा। संविधान केवल किताबों में नहीं, हमारे व्यवहार में ज़िंदा रहता है।
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