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10 साल में 500 फीट नीचे चला गया पानी: मध्य छत्तीसगढ़ प्यासा, शहरों की 20% आबादी टैंकर पर निर्भर

  10 साल में 500 फीट नीचे चला गया पानी: मध्य छत्तीसगढ़ प्यासा, शहरों की 20% आबादी टैंकर पर निर्भर: रायपुर : छत्तीसगढ़ की धरती के नीचे पानी ल...

 

10 साल में 500 फीट नीचे चला गया पानी: मध्य छत्तीसगढ़ प्यासा, शहरों की 20% आबादी टैंकर पर निर्भर:

रायपुर : छत्तीसगढ़ की धरती के नीचे पानी लगातार नीचे जा रहा है, और अब यह संकट अपने चरम पर पहुंच चुका है। दैनिक भास्कर की 14 रिपोर्टर्स की टीम ने 10 दिनों तक रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग सहित आसपास के गांवों और कस्बों में ग्राउंड रिपोर्टिंग की। निष्कर्ष भयावह हैं—पिछले 10 वर्षों में भूजल स्तर औसतन 500 फीट तक नीचे चला गया है। इस गिरावट ने न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है, बल्कि शहरी जीवन भी इसकी चपेट में है।


मध्य छत्तीसगढ़ सबसे अधिक प्रभावित:

राज्य का मध्य हिस्सा—जिसमें रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जैसे औद्योगिक व शैक्षणिक हब आते हैं—सबसे अधिक प्रभावित है। यहां की करीब 20% शहरी आबादी पीने के पानी के लिए निजी टैंकरों पर निर्भर हो चुकी है। सरकारी नलकूप या जल प्रदाय योजनाएं इस मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं।


ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और बदतर:

गांवों में हालात और गंभीर हैं। कई क्षेत्रों में खेतों के कुएं और बोरवेल सूख चुके हैं। किसान सिंचाई के लिए पानी नहीं जुटा पा रहे हैं, जिससे खेती में घाटा और कर्ज का संकट गहरा रहा है। महिलाएं हर दिन कई किलोमीटर चलकर पानी लाती हैं। यह स्थिति सामाजिक ढांचे को तोड़ रही है और घरेलू हिंसा, पलायन जैसी समस्याओं को जन्म दे रही है।


जल संकट से जुड़ी कुछ अहम बातें:

रायपुर में पिछले पांच वर्षों में 35% से ज्यादा हैंडपंप सूख चुके हैं।

बिलासपुर में भूमिगत जलस्तर 10 वर्षों में 120 मीटर से ज्यादा गिरा।

दुर्ग में टैंकरों की मांग अप्रैल-मई में दो गुनी हो जाती है।

महिलाओं और बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर भी जल संकट का असर।


प्रशासन की नीतियों पर सवाल:

सरकारी स्तर पर जल जीवन मिशन और अमृत योजना जैसी पहलें चल रही हैं, लेकिन रिपोर्ट में सामने आया कि कई स्थानों पर पाइपलाइनें अधूरी हैं या नल कनेक्शन सिर्फ कागजों में हैं। भूजल रिचार्ज संरचनाओं का अभाव और अवैध बोरवेल इस संकट को और बढ़ा रहे हैं।


समाधान की ओर—समूह प्रयास की आवश्यकता:

जल विशेषज्ञों का मानना है कि वर्षा जल संचयन, पारंपरिक जल संरचनाओं का पुनरुद्धार और सामुदायिक भागीदारी ही इस संकट से उबरने का रास्ता है। नागरिकों को भी जल संरक्षण की दिशा में पहल करनी होगी। सरकार को चाहिए कि वह कठोर नीति बनाकर भूजल दोहन पर नियंत्रण लगाए।

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