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नटवर स्कूल ही था विकल्प, फिर भी हार नहीं मानी": मुख्यमंत्री साय ने मुंगेली में साझा की संघर्ष की कहानी, युवाओं को दिए डिजिटल सफलता के सूत्र

नटवर स्कूल ही था विकल्प, फिर भी हार नहीं मानी": मुख्यमंत्री साय ने मुंगेली में साझा की संघर्ष की कहानी, युवाओं को दिए डिजिटल सफलता के स...


नटवर स्कूल ही था विकल्प, फिर भी हार नहीं मानी": मुख्यमंत्री साय ने मुंगेली में साझा की संघर्ष की कहानी, युवाओं को दिए डिजिटल सफलता के सूत्र:

मुंगेली : शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि संघर्ष, आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता भी इसका मूल है — यही संदेश मिला उस प्रेरक क्षण में, जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जिला ग्रंथालय परिसर में 29.90 लाख रुपये की लागत से निर्मित अतिरिक्त अध्ययन कक्ष का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने अपने बाल्यकाल की कठिनाइयों और सीमित संसाधनों के बीच पढ़ाई के अनुभवों को साझा कर युवाओं के हृदय को छू लिया।

मुख्यमंत्री साय ने कहा, “मेरे समय में नटवर स्कूल ही एकमात्र विकल्प था, लेकिन कभी हालात को अपने सपनों पर हावी नहीं होने दिया।” उन्होंने बताया कि किस तरह सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा और आज उसी नींव पर वे प्रदेश की सेवा कर पा रहे हैं।


मंच पर हुआ प्रेरणा का संगम:

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू, उप मुख्यमंत्री अरुण साव, और मुंगेली विधायक पुन्नूलाल मोहले समेत अनेक जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। युवा विद्यार्थियों ने मुख्यमंत्री का स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट और पुष्पगुच्छों से किया।


सोशल मीडिया पर युवाओं से संवाद:

कार्यक्रम का एक विशेष पल तब आया, जब एक छात्र ने डिजिटल युग और सोशल मीडिया की भूमिका पर मुख्यमंत्री से सवाल पूछा। साय ने उत्तर में कहा, “आज तकनीक हमारे पास एक शक्तिशाली साधन है। इसका उपयोग ज्ञान, रचनात्मकता और आत्मविकास के लिए होना चाहिए। तकनीक को साधन बनाएं, साध्य नहीं।”

उन्होंने युवाओं को आगाह किया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म का विवेकपूर्ण उपयोग करें, जहां अच्छाई को आत्मसात करें और बुराई से दूरी बनाए रखें। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “जो अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहता है, वही असली विजेता होता है।”


एक दृष्टिकोण जो भविष्य गढ़ता है:

कार्यक्रम का यह आयोजन न केवल एक भौतिक संरचना के लोकार्पण तक सीमित रहा, बल्कि यह भावनात्मक और बौद्धिक प्रेरणा का स्रोत बन गया। मुख्यमंत्री साय की जीवनगाथा ने यह साबित कर दिया कि सीमित विकल्पों में भी अगर इच्छाशक्ति प्रबल हो, तो हर बाधा पार की जा सकती है।



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