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जिद से बदलाव: जंगल से बस्ती तक… शिक्षक प्रदीप श्रीवास्तव ने कोरवा जनजाति की तस्वीर बदल दी

जिद से बदलाव: जंगल से बस्ती तक… शिक्षक प्रदीप श्रीवास्तव ने कोरवा जनजाति की तस्वीर बदल दी: बिलासपुर :  कभी जंगलों में कंद-मूल खाकर और शिकार ...


जिद से बदलाव: जंगल से बस्ती तक… शिक्षक प्रदीप श्रीवास्तव ने कोरवा जनजाति की तस्वीर बदल दी:

बिलासपुर : कभी जंगलों में कंद-मूल खाकर और शिकार करके जीवन जीने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति कोरवा अब स्थायी आवासों में रह रही है, खेती कर रही है और उनके बच्चे स्कूल जा रहे हैं। यह चमत्कार किसी सरकारी मिशन ने नहीं, बल्कि बिलासपुर के शिक्षक प्रदीप श्रीवास्तव की जिद और समर्पण ने किया है।

प्रदीप श्रीवास्तव ने अपने दम पर कोरवा जनजाति के लोगों को जंगल से निकालकर मुख्यधारा से जोड़ा। उन्होंने न केवल इन्हें आधुनिक जीवन शैली से परिचित कराया, बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर उनके लिए पक्के मकान, राशन और स्कूल की व्यवस्था भी करवाई।


गांव बसाया, सपने जगाए:

प्रदीप श्रीवास्तव ने कई साल जंगलों में बिताए, कोरवा समाज का विश्वास जीता और धीरे-धीरे उन्हें यह समझाया कि बस्ती में रहना, खेती करना और बच्चों को पढ़ाना उनके भविष्य के लिए कितना जरूरी है। उनके प्रयासों से एक पूरा गांव बसाया गया — जिसमें अब लोग स्थायी रूप से रह रहे हैं।


आवास से शिक्षा तक:

सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर उन्होंने दर्जनों परिवारों के लिए आवास मंजूर करवाए। आज इन परिवारों के बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ रहे हैं। कुछ युवाओं को प्रशिक्षण दिलाकर नौकरी के लायक भी बनाया गया है।


संघर्ष से सीख:

प्रदीप कहते हैं, “शुरुआत में लोगों ने विरोध किया, डरते थे। लेकिन जब उन्हें भरोसा हुआ कि हम उनका भला चाहते हैं, तो उन्होंने कदम बढ़ाया। अब वे खुद आगे आकर औरों को भी जोड़ रहे हैं।”


एक शिक्षक का बड़ा असर:

यह कहानी सिर्फ कोरवा जनजाति की नहीं है, यह उस बदलाव की कहानी है जो एक शिक्षक अपने अकेले संघर्ष से ला सकता है। प्रदीप श्रीवास्तव ने दिखा दिया कि जिद और सेवा की भावना हो तो पहाड़ भी हिलाए जा सकते हैं

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