माटी — विशेष कवरेज *माटी* *माटी की यात्रा के पीछे खड़ी संवेदना और सुरक्षा—संपत झा एवं IG पी. सुंदरराज का आत्मीय क्षण* ...
आदिवासी अंचल की पीड़ा, संघर्ष और मानवीय संवेदनाओं को पर्दे पर सजीव रूप देने वाली फिल्म ‘माटी’ की निर्माण यात्रा उतनी ही प्रेरक और भावनात्मक रही है, जितनी इसकी कहानी। फिल्म के निर्माताओं ने शुरू से स्पष्ट कर दिया था कि यह कथा स्टूडियो की कृत्रिमता में नहीं, बल्कि उन्हीं जंगलों और पहाड़ों में फिल्माई जाएगी जहाँ बस्तर की असल ज़िंदगी सांस लेती है।
इसी संकल्प ने उन्हें सुकमा के देवरपल्ली–पोलमपल्ली, नारायणपुर के लंका और बीजापुर के तर्रेम जैसे अत्यंत संवेदनशील इलाकों तक पहुँचा दिया—वे स्थान जहाँ सुरक्षा की जटिलताएँ और नक्सल गतिविधियों की वास्तविकता लगातार मौजूद रहती है।
फिल्म की टीम को इन क्षेत्रों में न सिर्फ सुरक्षा-संरक्षण मिला बल्कि भावनात्मक सहयोग भी—और यह सहयोग पाँच वर्ष पहले भी उतनी ही आत्मीयता से मिला था। इस पूरे अभियान में बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी की भूमिका निर्णायक रही। उन्होंने न सिर्फ शूटिंग के लिए सुरक्षित मार्ग उपलब्ध कराए बल्कि टीम को मनोबल देने वाली वह संवेदनशीलता भी दी, जो किसी सृजनशील यात्रा को आगे बढ़ाती है।
आज जब ‘माटी’ को छत्तीसगढ़ के 3 करोड़ लोगों के ‘परिवार’ ने जिस स्नेह और सम्मान के साथ अपनाया है, उसे फिल्म टीम एक भावनात्मक उपलब्धि मान रही है। इस स्वीकार्यता का बड़ा श्रेय बस्तर आईजी पी. सुंदरराज को देते हुए फिल्म के निर्माता संपत झा ने विशेष भेंट के दौरान *विह्वल भाव से उनका आत्मीय सम्मान किया और गहरी कृतज्ञता व्यक्त की*।
संपत झा ने कहा कि “माटी की आत्मा बस्तर है, और बस्तर की सुरक्षा–संवेदना दोनों को सँभालने वाले लोगों के सहयोग के बिना यह संभव ही नहीं था।”
फिल्म की टीम का यह सम्मान और भावनात्मक जुड़ाव इस बात की पुष्टि करता है कि बस्तर की सच्चाई को सामने लाने की यह सिनेमाई कोशिश अब केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की साझी स्मृति और गर्व का दस्तावेज बन चुकी है।


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