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एक कुएं में दो गांवों का ‘अमृत’: गर्मी में पानी की होड़, एक मिनट की देरी और झिरिया की मजबूरी

  एक कुएं में दो गांवों का ‘अमृत’: गर्मी में पानी की होड़, एक मिनट की देरी और झिरिया की मजबूरी: बिलासपुर/खोंगसरा: गर्मी की तपिश जब शरीर झुलस...

 

एक कुएं में दो गांवों का ‘अमृत’: गर्मी में पानी की होड़, एक मिनट की देरी और झिरिया की मजबूरी:

बिलासपुर/खोंगसरा: गर्मी की तपिश जब शरीर झुलसाती है, तब सबसे कीमती चीज़ बन जाता है — पानी। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले से लगभग 80 किलोमीटर दूर खोंगसरा के पास स्थित चांटीडाड़ गांव में यही हाल है, जहां टाटीधार पंचायत के बगधरा और चांटीडाड़ गांव के लोग एक ही कुएं के सहारे अपनी प्यास बुझा रहे हैं।

यह कुआं सिर्फ एक जलस्रोत नहीं, बल्कि दो गांवों की उम्मीदों का अमृत है। लेकिन यह अमृत भी उतना सहज नहीं जितना लगता है। कुएं का जलस्तर काफी नीचे चला गया है। सुबह के कुछ ही मिनटों में यदि पानी नहीं भर पाए तो लोगों को कई किलोमीटर दूर झिरिया (प्राकृतिक जलस्रोत) का रुख करना पड़ता है — जो न तो स्वच्छ है और न ही सुलभ।

गांव की मालती बाई कहती हैं, "हम चार बजे उठते हैं, ताकि पानी मिल जाए। देर हो गई तो बाल्टी खाली रह जाती है और पैदल झिरिया जाना पड़ता है।"

बगधरा के मोहनलाल बताते हैं कि "हमने कई बार पंचायत में शिकायत की है, पर आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं हुआ।"


समस्या के कारण:

अत्यधिक गर्मी और सूखा

ग्रामीण जल संरचनाओं का अभाव

हैंडपंप सूख गए, नल योजनाएं अधूरी


ग्रामवासियों की मांगें:

स्थायी जलस्रोत की व्यवस्था

नलजल योजनाओं को शीघ्र पूरा किया जाए

वर्षा जल संचयन की सुविधा

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे इन ग्रामीणों की आवाज़ सुनें और समय रहते हल निकालें, ताकि पानी के लिए संघर्ष ना हो, बल्कि हर गांव में जीवन का अमृत सहजता से बहता रहे।




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