शादी हो या पूजा, नगाड़ा जरूर बजेगा: बस्तर की सदियों पुरानी आदिवासी परंपरा में वाद्ययंत्रों की खास जगह: छत्तीसगढ़ : के बस्तर में जब शादी की...
शादी हो या पूजा, नगाड़ा जरूर बजेगा: बस्तर की सदियों पुरानी आदिवासी परंपरा में वाद्ययंत्रों की खास जगह:
छत्तीसगढ़ : के बस्तर में जब शादी की शहनाई बजती है या देवी-देवताओं को मनाने की रस्म होती है, तो वहां सिर्फ गीत नहीं गूंजते—वाद्ययंत्र भी अपनी पूरी ताकत से बोलते हैं। आदिवासी समाज में बिना वाद्ययंत्र के न कोई शादी होती है, न कोई पूजा।
बस्तर की परंपरा में हर आयोजन के लिए अलग-अलग वाद्ययंत्र तय हैं। नगाड़े, मांदर, तुरही और ढोल जैसे वाद्ययंत्र सिर्फ संगीत नहीं देते, वो समुदाय की भावना, श्रद्धा और उत्सव का प्रतीक भी हैं। खास बात यह है कि नगाड़ा हमेशा मेल-फीमेल के जोड़े में बजता है—एक पुरुष बजाता है, दूसरा महिला। यह न केवल सामूहिकता का प्रतीक है, बल्कि लिंग समानता की भी अनोखी मिसाल है।
छठी, मड़ई, मेला या कोई देवी जागरण—हर अवसर पर इन वाद्ययंत्रों की जरूरत होती है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी वैसी ही जीवंत है, जैसे पहले थी। बस्तर के लिए ये वाद्ययंत्र सिर्फ संगीत का साधन नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति की धड़कन हैं।
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