विधानसभा में मुख्यमंत्री का बयान, कहा – लोकतंत्र किसी की बपौती नहीं, करोड़ों भारतीयों के बलिदान का परिणाम रायपुर : मुख्यमंत्री विष्णु देव...
विधानसभा में मुख्यमंत्री का बयान, कहा – लोकतंत्र किसी की बपौती नहीं, करोड़ों भारतीयों के बलिदान का परिणाम
रायपुर : मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शुक्रवार को विधानसभा में आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि 21 मार्च 1977 वह ऐतिहासिक दिन था जब देश ने तानाशाही के विरुद्ध निर्णायक जीत दर्ज की थी। यह सिर्फ एक राजनीतिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का क्षण था।
मुख्यमंत्री ने कहा, "लोकतंत्र किसी व्यक्ति या परिवार की बपौती नहीं है। यह उन करोड़ों भारतीयों के बलिदान और संकल्प का परिणाम है, जिन्होंने स्वतंत्रता, न्याय और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।"
साय ने आपातकाल के दौरान हुई लोकतांत्रिक अधिकारों की हानि को याद करते हुए कहा कि इस दौर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुचली गई, विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया और प्रेस पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई। उन्होंने इसे भारतीय गणराज्य के संवैधानिक मूल्यों पर सबसे बड़ा आघात करार दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह जरूरी है कि देश के युवा इस ऐतिहासिक सत्य को समझें और भविष्य में लोकतंत्र को किसी भी तरह की तानाशाही प्रवृत्तियों से सुरक्षित रखने का संकल्प लें। उन्होंने इस अवसर पर लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और संविधान के प्रति पूर्ण निष्ठा बनाए रखने की अपील की।
"लोकतंत्र को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी"
साय ने कहा कि लोकतंत्र सिर्फ एक प्रणाली नहीं, बल्कि जनता की शक्ति और अधिकारों का प्रतीक है। इसे बनाए रखना और सशक्त करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि भारत ने आपातकाल के काले दौर से सबक लिया और आज यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि ऐसी स्थितियां दोबारा उत्पन्न न हों।
मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद विधानसभा में जोरदार चर्चा हुई, जिसमें विभिन्न दलों के नेताओं ने अपने विचार रखे। विपक्ष ने भी लोकतंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया, जबकि सत्ता पक्ष ने आपातकाल के दुष्प्रभावों को याद कराते हुए इसे इतिहास से सबक लेने का अवसर बताया।
"आपातकाल सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि चेतावनी थी"
मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि आपातकाल केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि यह एक चेतावनी थी कि जब भी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला होगा, जनता उसका विरोध करेगी और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ी होगी।
साय के इस बयान से विधानसभा में राजनीतिक हलचल तेज हो गई, लेकिन अंत में सभी ने लोकतंत्र की मजबूती के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
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