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दंतेवाड़ा में दो भाइयों के बीच चुनावी मुकाबला: बचपन का गिल्ली-डंडा खेल अब राजनीतिक अखाड़े में बदल गया

  दंतेवाड़ा में दो भाइयों के बीच चुनावी मुकाबला: बचपन का गिल्ली-डंडा खेल अब राजनीतिक अखाड़े में बदल गया दंतेवाड़ा:   जिले में इस बार चुनाव क...

 दंतेवाड़ा में दो भाइयों के बीच चुनावी मुकाबला: बचपन का गिल्ली-डंडा खेल अब राजनीतिक अखाड़े में बदल गया


दंतेवाड़ा:  जिले में इस बार चुनाव का रंग कुछ खास है। यहां दो सगे भाई, जो कभी बचपन में साथ मिलकर गिल्ली-डंडा खेला करते थे, अब चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं। यह मुकाबला न केवल जीत-हार का है, बल्कि साख और प्रतिष्ठा की लड़ाई भी बन चुका है।

राजनीति के इस अनोखे दंगल ने लोगों के बीच चर्चा का विषय बना दिया है। दोनों भाइयों के समर्थक अपनी-अपनी तरफ से माहौल गर्माने में जुटे हैं। कभी एक-दूसरे के साथ हर सुख-दुख बांटने वाले ये भाई अब अपनी विचारधाराओं और राजनीतिक दलों के साथ खड़े हैं।


स्थानीय लोगों का कहना है कि यह चुनावी टक्कर उनके लिए एक भावनात्मक संघर्ष भी है। दंतेवाड़ा के इस अनूठे चुनाव ने साबित कर दिया है कि राजनीति रिश्तों को किस तरह प्रभावित कर सकती है। अब देखना होगा कि कौन सा भाई इस चुनावी मुकाबले में बाजी मारता है और क्षेत्र की जनता किसके पक्ष में फैसला सुनाती है।


दंतेवाड़ा में चचेरे भाइयों की चुनावी टक्कर: गीदम नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने:


छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में गीदम नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव इस बार बेहद रोचक हो गया है। यहां कांग्रेस के रविश सुराना और भाजपा के रजनीश सुराना, जो रिश्ते में चचेरे भाई हैं, चुनावी मैदान में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों भाई बचपन में साथ मिलकर गिल्ली-डंडा खेला करते थे और अब राजनीति के इस दंगल में एक-दूसरे को टक्कर दे रहे हैं।


दोनों भाइयों का राजनीतिक मुकाबला क्षेत्र में चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है। जहां रविश कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे हैं और विकास कार्यों के दावे के साथ जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं रजनीश भाजपा की विचारधारा और योजनाओं के सहारे अपने पक्ष में माहौल बना रहे हैं।


यह चुनाव केवल दो दलों का संघर्ष नहीं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों की एक अनोखी कहानी भी है। जनता के बीच इस टक्कर ने उत्सुकता बढ़ा दी है। लोग कह रहे हैं कि बचपन का साथ अब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में बदल गया है।


अब देखना यह होगा कि गीदम की जनता किसे अपना अध्यक्ष चुनती है और यह चुनाव कौन से भाई की तकदीर बदलता है


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