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भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग का हो रहा क्षरण, बचाने के लिए चांदी का कवच चढ़ाने की तैयारी : 21 किलो चांदी से ढके जाएंगे महादेव

  रायपुर । 11वीं शताब्दी में बने भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग पर जलभिषेक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अभी केवल पुजारी ही शिवलिंग का अभिषेक-पूजन...

 


रायपुर ।

11वीं शताब्दी में बने भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग पर जलभिषेक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अभी केवल पुजारी ही शिवलिंग का अभिषेक-पूजन कर पाएंगे।


छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग का क्षरण हो रहा है। शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए उस पर 21 किलोग्राम चांदी का कवच चढ़ाया जाएगा। साथ ही, शेषनाग की प्रतिमा भी चांदी की होगी। चांदी का कवच बनाने के लिए राजस्थान के कारीगर को ऑर्डर दिया गया है। यह अगले डेढ़ महीने में बनकर तैयार हो जाएगा।

भोरमदेव मंदिर के मुख्य पुजारी आशीष कुमार शास्त्री ने बताया, कई तरह के जल चढ़ाने, रुद्राभिषेक आदि लगातार चलते रहने और श्रद्धालुओं के स्पर्श से प्राचीन शिवलिंग का क्षरण हो रहा था। उसके लिए कुछ वर्ष पूर्व चांदी का एक कवच बनाया गया था। वह कवच जीर्णशीर्ण हो गया है। कई जगह से टूट गया है। ऐसे में जनसहयोग से 21 किलोग्राम चांदी के कवच से शिवलिंग को सजाने का निर्णय लिया गया है। शिवलिंग के कवच के साथ ही शेषनाग की प्रतिमा भी होगी। चांदी का नया कवच बनने में 40 से 50 दिन का समय लगेगा। उसके बाद शुभ मुहूर्त देखकर वेदमंत्रों के साथ उस कवर को शिवलिंग पर स्थापित कर दिया जाएगा।


क्षरण के चलते जलाभिषेक पर लगाई रोक

भोरमदेव मंदिर के पुजारी पं. आशीष कुमार शास्त्री ने बताया कि मंदिर में शिवलिंग पर पूर्व में चांदी का कवच लगा था, वह घिसकर टूट गया है। अभी उसे निकालकर रख दिया गया है। चांदी का नया कवच आने तक श्रद्धालुओं द्वारा शिवलिंग पर जलभिषेक व रूद्राभिषेक पर प्रतिबंध रहेगा। श्रद्धालु शिवलिंग को हाथ भी नहीं लगाएंगे। हालांकि, श्रद्धालुओं के गर्भगृह में प्रवेश व दर्शन पर रोक नहीं है। केवल पुजारी ही सुबह व शाम के वक्त पूजा- अभिषेक कर सकेंगे।


11वीं शताब्दी का मंदिर, खजुराहो जैसा शिल्प


कवर्धा जिला मुख्यालय से करीब 18 किमी दूर चौरा गांव में ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर स्थित है। 11वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर खजुराहो जैसा काम शिल्प देखने को मिलता है। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। यह मंदिर नागर शैली का अनुपम नमूना है।


एक पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर में 3 ओर से प्रवेश द्वार है। तीनों प्रवेश द्वार से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जाता है। मंडप की लंबाई 60 फीट और चौड़ाई 40 फीट है। मंडप के बीच 4 स्तंभ हैं और किनारे की ओर 12 स्तंभ हैं। इन स्तंभों ने मंडप की छत को संभाल रखा है। इन स्तंभों पर सुंदर कलाकृतियां है।


ज्योतिर्लिंगों में भी क्षरण रोकने के उपाय हुए हैं

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में क्षरण रोकने के उपाय की मांग करने वाली एक याचिका पर फैसला दिया था। इसमें अभिषेक आदि के लिए विशिष्ट नियम बने। बताया जा रहा है, शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए बहुत से मंदिरों में अलग-अलग उपाय किए गए हैं।


केदारनाथ, मल्लिकार्जुन, भीमाशंकर, घृष्णेश्वर, सोमनाथ, ओंकारेश्वर और त्र्यंबकेश्वर में दर्शनार्थियों द्वारा शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाने पर पूरी तरह रोक है। नागेश्वर और भीमाशंकर में ज्योतिर्लिंग को चांदी के कवच से ढका जाता है। वहीं रामेश्वरम और सोमनाथ में श्रद्धालुओं का गर्भगृह में प्रवेश ही प्रतिबंधित हैं।

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