एक बिल, तीन काउंसिल: कैसे ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान’ भारत की पूरी उच्च शिक्षा व्यवस्था बदल सकता है? UGC, AICTE और NCTE के बाद एकल...
एक बिल, तीन काउंसिल: कैसे ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान’ भारत की पूरी उच्च शिक्षा व्यवस्था बदल सकता है?
भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली लंबे समय से एक जटिल और बहु-स्तरीय नियामक ढांचे में संचालित होती रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) जैसे समानांतर निकायों ने व्यवस्था को नियंत्रित तो किया, लेकिन साथ ही संस्थानों पर भ्रम, दोहराव और अनुपालन का भारी बोझ भी डाला।
इसी पृष्ठभूमि में संसद में प्रस्तुत किया गया ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025’ केवल संस्थागत पुनर्गठन का प्रस्ताव नहीं है, बल्कि यह भारत की उच्च शिक्षा के नियामक दर्शन में बुनियादी परिवर्तन का संकेत देता है। यह विधेयक नियंत्रण-आधारित मॉडल से हटकर विश्वास, गुणवत्ता और परिणाम-आधारित शासन की ओर बढ़ने का दावा करता है — ठीक उसी “Light but Tight” सोच के अनुरूप, जिसकी कल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने की थी।
एक युग का अंत: अब UGC, AICTE और NCTE नहीं
विधेयक का सबसे बड़ा और प्रतीकात्मक बदलाव है — दशकों से चली आ रही खंडित नियामक व्यवस्था का अंत। इसके लागू होते ही UGC, AICTE और NCTE जैसे निकाय समाप्त कर दिए जाएंगे और उनकी जगह एक एकीकृत शीर्ष संस्था ‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान’ (VBSA) लेगी।
सरकार का तर्क है कि एकल नियामक ढांचा न केवल प्रशासनिक सरलता लाएगा, बल्कि बदलती वैश्विक और तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप उच्च शिक्षा को अधिक लचीला और प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
एक में तीन: VBSA का नया ढांचा
VBSA एक छत्र संस्था के रूप में कार्य करेगा, जिसके अंतर्गत तीन स्वतंत्र लेकिन परस्पर पूरक परिषदें होंगी — ताकि शक्ति-संकेंद्रण और हितों के टकराव से बचा जा सके।
- विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद — संस्थानों की निगरानी, शिकायत निवारण और व्यावसायीकरण पर नियंत्रण।
- विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद — मान्यता देने वाली एजेंसियों का पर्यवेक्षण, परिणाम-आधारित गुणवत्ता प्रणाली।
- विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद — डिग्री, डिप्लोमा, लर्निंग आउटकम और क्रेडिट ट्रांसफर के मानक।
सबसे बड़ा संरचनात्मक बदलाव: फंडिंग और रेगुलेशन का अलगाव
अब VBSA केवल गुणवत्ता, मानक और जवाबदेही पर केंद्रित रहेगा, जबकि वित्तीय सहायता के लिए अलग सरकारी तंत्र होगा। यह परिवर्तन नियामकों को अधिक निष्पक्ष और अकादमिक स्वतंत्रता-समर्थक बनाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
जवाबदेही का नया दौर: जुर्माना और पारदर्शिता
विधेयक का “Tight” पहलू कठोर दंड प्रावधानों में स्पष्ट दिखाई देता है — जहाँ उल्लंघन पर ₹10 लाख से ₹75 लाख तक का जुर्माना और अवैध विश्वविद्यालयों पर ₹2 करोड़ तक की सजा प्रस्तावित है।
इसके साथ ही, संस्थानों को वित्त, फैकल्टी, छात्र परिणाम और विकास योजनाओं का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य करना — नियमन को आदेश से अधिक लोक-निगरानी आधारित बनाता है।
विवाद और राजनीति: समर्थन के साथ आशंकाएँ
शिक्षक और छात्र संगठनों की चिंता है कि नई संरचना में अकादमिक समुदाय का प्रतिनिधित्व कमज़ोर पड़ सकता है, जबकि फंडिंग-रेगुलेशन अलगाव से सार्वजनिक संस्थानों की वित्तीय सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
इन्हीं चिंताओं के मद्देनज़र सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने का निर्णय लिया है।
अंततः
‘विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025’ भारत की उच्च शिक्षा को सरल, पारदर्शी और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने का साहसिक प्रयास है। लेकिन इसकी वास्तविक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह सुधार संस्थागत स्वायत्तता और संघीय संतुलन को कितनी संवेदनशीलता से संभाल पाता है।
असली प्रश्न यही है — क्या “Light but Tight” मॉडल विश्वविद्यालयों को सशक्त करेगा, या नियमन का नया केंद्रीकृत रूप गढ़ेगा? इसका उत्तर अब JPC की सिफारिशों और भविष्य के क्रियान्वयन में छिपा है।


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