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पेसा महोत्सव: छत्तीसगढ़ में सामुदायिक नेतृत्व और स्वशासन का उत्सव

पेसा महोत्सव: छत्तीसगढ़ में सामुदायिक नेतृत्व और स्वशासन का उत्सव लेखक: डॉ. रूपेन्द्र कवि मानव वैज्ञानिक | साहित्यकार | परोपक...

पेसा महोत्सव: छत्तीसगढ़ में सामुदायिक नेतृत्व और स्वशासन का उत्सव

लेखक: डॉ. रूपेन्द्र कवि
मानव वैज्ञानिक | साहित्यकार | परोपकारी
(उप सचिव, राज्यपाल का सचिवालय, छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़, भारत के उन आदिवासी बहुल राज्यों में अग्रणी है जहाँ सांस्कृतिक विरासत, सामुदायिक चेतना और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व आज भी सामाजिक जीवन की बुनियाद हैं। यहाँ की आदिवासी समाज-व्यवस्था ने सदियों से अपने संसाधनों—भूमि, जल, जंगल और खनिज—का संरक्षण सामूहिक निर्णयों और परंपरागत ज्ञान के माध्यम से किया है।

इसी ऐतिहासिक परंपरा को संवैधानिक मान्यता देने के उद्देश्य से पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 अस्तित्व में आया, जिसे सामान्यतः पेसा अधिनियम कहा जाता है। इस कानून का मूल भाव ग्राम सभा को केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं, बल्कि स्थानीय लोकतंत्र की आत्मा के रूप में स्थापित करना है।

छत्तीसगढ़ में पेसा अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सभाओं को भूमि उपयोग, वन संसाधन, जल स्रोत, खनन गतिविधियाँ तथा विकास योजनाओं पर निर्णायक अधिकार प्राप्त हैं। किसी भी परियोजना का क्रियान्वयन ग्राम सभा की पूर्व सहमति के बिना संभव नहीं है। यह व्यवस्था न केवल स्थानीय परंपराओं का सम्मान करती है, बल्कि विकास को समुदाय-केंद्रित और न्यायपूर्ण बनाती है।

पेसा महोत्सव इसी संवैधानिक सशक्तिकरण का सार्वजनिक उत्सव है—जहाँ आदिवासी अधिकार, सामुदायिक नेतृत्व और लोकतांत्रिक सहभागिता एक जीवंत मंच पर एकत्र होते हैं।

यह महोत्सव केवल लोकगीत, नृत्य और हस्तशिल्प तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन ग्राम सभाओं के अनुभवों को साझा करने का अवसर भी देता है जिन्होंने अपने अधिकारों का प्रभावी उपयोग कर विकास की नई राहें खोली हैं। विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी इस आयोजन को भविष्यदृष्टि प्रदान करती है।

हालाँकि पेसा अधिनियम ने ग्राम सभाओं को सशक्त बनाया है, परंतु जागरूकता की कमी, प्रशासनिक समन्वय की जटिलताएँ और क्षमता निर्माण की आवश्यकता जैसी चुनौतियाँ अभी भी विद्यमान हैं। इनसे निपटने के लिए निरंतर प्रशिक्षण, समयबद्ध निर्णय-क्रियान्वयन, युवाओं एवं महिलाओं की निर्णायक भूमिका और तकनीक आधारित पारदर्शिता अनिवार्य है।

छत्तीसगढ़ में पेसा महोत्सव यह स्पष्ट संकेत देता है कि जब शासन की धुरी स्थानीय समुदाय बनता है, तब लोकतंत्र अधिक संवेदनशील, समावेशी और टिकाऊ होता है। यह उत्सव आदिवासी समाज के आत्मसम्मान, स्वशासन और संवैधानिक चेतना का प्रतीक है।

अस्वीकरण (Disclaimer):
यह लेख लेखक के व्यक्तिगत विचारों और अनुसंधान पर आधारित है। इसमें व्यक्त किसी भी राय, सुझाव या विश्लेषण का छत्तीसगढ़ राज्य सरकार, राज्यपाल कार्यालय अथवा किसी सरकारी पद से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं है।
Dr Rupendra Kavi

डॉ. रूपेन्द्र कवि

मानव वैज्ञानिक | साहित्यकार | परोपकारी

(उप सचिव, राज्यपाल का सचिवालय, छत्तीसगढ़)

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