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छत्तीसगढ़: विकास, शासन और सुरक्षा की त्रिवेणी — संभावनाओं और विडंबनाओं का राज्य

छत्तीसगढ़: विकास, शासन और सुरक्षा की त्रिवेणी — संभावनाओं और विडंबनाओं का राज्य छत्तीसगढ़ आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है ज...

छत्तीसगढ़: विकास, शासन और सुरक्षा की त्रिवेणी — संभावनाओं और विडंबनाओं का राज्य

छत्तीसगढ़ आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ विकास की योजनाएँ, शासन की मंशा और सुरक्षा की वास्तविकताएँ — तीनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। सड़कें, स्कूल, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और पर्यावरणीय पहलें प्रगति का संकेत देती हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कई बार इन दावों को कठघरे में खड़ा कर देती है।


ग्रामीण अवसंरचना: काग़ज़ पर आदर्श, ज़मीन पर संघर्ष

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी परियोजनाएँ ग्रामीण छत्तीसगढ़ के लिए जीवनरेखा मानी जाती हैं। तकनीकी मानकों, पर्यावरणीय दिशानिर्देशों और ई-गवर्नेंस प्रणालियों के बावजूद, घटिया निर्माण और भ्रष्टाचार की शिकायतें यह सवाल उठाती हैं कि क्या समस्या नीति में है या नीयत में।

मुख्य सवाल: जब तकनीकी ढाँचा मजबूत है, तो सड़कें पहली बारिश में क्यों बह जाती हैं?

शासन और भ्रष्टाचार: जीरो टॉलरेंस या चयनात्मक सख़्ती?

राज्य सरकार द्वारा विशेष न्यायालय अधिनियम, ई-जनदर्शन और डिजिटल मॉनिटरिंग जैसे कदम यह दर्शाते हैं कि सुधार की कोशिशें जारी हैं। लेकिन DMF फंड, चावल मिलिंग और भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में बार-बार सामने आते घोटाले इस प्रयास की सीमाएँ भी उजागर करते हैं।

“कानून तब प्रभावी नहीं होता जब तक उसका भय और निष्पक्षता दोनों समान रूप से मौजूद न हों।”

वामपंथी उग्रवाद: विकास का अदृश्य अवरोध

बस्तर अंचल में नक्सलवाद केवल सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और भरोसे का संकट भी है। स्कूलों का ध्वंस, ग्रामीणों की दुविधा और सुरक्षा बलों पर हमले यह दिखाते हैं कि विकास की राह यहाँ अब भी बारूदी सुरंगों से भरी है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज: विकास की मानवीय कसौटी

CHALK परियोजना और समग्र शिक्षा जैसे कार्यक्रम भविष्य की तैयारी हैं, लेकिन बिलासपुर नसबंदी कांड जैसी घटनाएँ यह याद दिलाती हैं कि प्रशासनिक लापरवाही का मूल्य आम नागरिक अपने जीवन से चुकाता है।

पर्यावरण: संरक्षण बनाम टकराव

प्लास्टिक प्रतिबंध, ग्रीन रोड्स और पक्षी अभयारण्य जैसे कदम पर्यावरणीय चेतना का संकेत देते हैं, वहीं मानव-हाथी संघर्ष यह बताता है कि विकास और प्रकृति के बीच संतुलन अब भी एक अधूरा अध्याय है।


अंततः

छत्तीसगढ़ न तो केवल समस्याओं का राज्य है, न ही उपलब्धियों का। यह एक संभावनाशील प्रदेश है, जिसकी दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि शासन पारदर्शिता को कितना व्यवहार में उतार पाता है और सुरक्षा के साथ-साथ विश्वास का निर्माण कैसे करता है।

शुभांशु झा

संपादक – 4thcolumn.in

वरिष्ठ विश्लेषक | शासन, नीति और सामाजिक सरोकार

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