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नक्सलवाद से आहत बस्तर अब फिर उठ खड़ा हो रहा है, ‘माटी’ बनी मील का पत्थर : छग सर्व आदिवासी समाज

•  छग सर्व आदिवासी समाज ने देखी फिल्म माटी : जगदलपुर :  बस्तर में सामाजिक जागृति की नई लहर को गति देती फिल्म ‘माटी’ को सर्व आदिवासी समाज के...

•  छग सर्व आदिवासी समाज ने देखी फिल्म माटी :



जगदलपुर : बस्तर में सामाजिक जागृति की नई लहर को गति देती फिल्म ‘माटी’ को सर्व आदिवासी समाज के वरिष्ठ पदाधिकारियों और सदस्यों ने सामूहिक रूप से देखा। इस अवसर पर समाज के नेताओं ने फिल्म की विषयवस्तु, संदेश और उसकी सामाजिक उपयोगिता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की।


सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़ के कार्यकारी अध्यक्ष राजाराम तोड़ेम ने फिल्म को बस्तर के लिए मील का पत्थर बताया। उन्होंने कहा कि “बस्तरवासियों का जीवन हमेशा से सरल और प्रकृति के निकट रहा है, लेकिन नक्सलवाद ने इस सहज जीवन को गहरा आघात पहुंचाया। ‘माटी’ हमारे समाज की आत्मा को फिर से झकझोरने वाला संदेश देती है। हमें इस फिल्म के संदेश को अपने जीवन में उतारना होगा। बस्तर में अब शांति स्थापित हो रही है—और निश्चय ही हम पुनः आनंद और विश्वास के साथ जीवन जिएंगे।”



सर्व आदिवासी समाज के बस्तर जिला अध्यक्ष दशरथ कश्यप ने फिल्म देखकर कहा कि “अब हमारा बस्तर करवट बदल रहा है। कई दशकों तक नकारात्मक शक्तियों की काली छाया में दबा बस्तर अब एक उजले भविष्य की ओर बढ़ रहा है। आदिवासियों का जागरण और विकास अब कोई नहीं रोक सकता।” कश्यप ने विशेष रूप से फिल्म में प्रस्तुत संवेदनशील दृश्य और बस्तर की वास्तविकता को दर्शाने की प्रतिबद्धता की सराहना की।


फिल्म के दौरान कश्यप भीमा के संवाद से विशेष रूप से प्रभावित दिखे, जिसमें वह लाखों आदिवासियों के हितों के प्रति अपनी चिंता और नैतिक दायित्वों के प्रति अडिग रहने की बात करता है। कश्यप ने कहा कि “यह संवाद केवल कहानी नहीं, बल्कि बस्तर के हर जागरूक आदिवासी की आत्मा की आवाज़ है।”


फिल्म के प्रभाव और सामाजिक महत्त्व को देखते हुए जिला अध्यक्ष दशरथ कश्यप ने छत्तीसगढ़ सरकार से फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग भी रखी, ताकि अधिक से अधिक लोग इसे देख सकें और इसके संदेश को समझ सकें।


फिल्म प्रदर्शन में अरुण नेताम, सदा, राम प्रसाद, अशोक कश्यप, विजय कुमार कश्यप, चमेली जेराम, दयामनी नाग, यशोदा नाग, कौशल नागवंशी सहित समाज के 100 से अधिक वरिष्ठ सदस्य उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में माना कि ‘माटी’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पीड़ा, संघर्ष और भविष्य की आशाओं का दर्पण है।


समाज के सदस्यों ने उम्मीद जताई कि ऐसी फिल्मों से बस्तर के वास्तविक चरित्र को राष्ट्रीय पहचान मिलेगी और शांति तथा विकास की प्रक्रिया और तेज होगी।

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