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बस्तर सांसद महेश कश्यप के अतारांकित प्रश्न पर केंद्र सरकार का तथ्यात्मक उत्तर जनजातीय छात्रों की शिक्षा पर गंभीर प्रयासों की झलक

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संसद में विपक्ष का गैर जिम्मेदाराना हंगामा से संसाधनों,समय और जनहित की अनदेखी :


जगदलपुर : लोकसभा के मानसून सत्र के दौरान बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद महेश कश्यप द्वारा जनजातीय समुदाय के विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक सुविधाओं,छात्रावासों और पोटाकेबिन योजना से जुड़ा अतारांकित प्रश्न पूछा गया। इस प्रश्न के माध्यम से उन्होंने केंद्र सरकार से तीन मुख्य बिंदुओं पर जानकारी मांगी जिसमें बस्तर संभाग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों के लिए स्वीकृत छात्रावासों और सीटों का विवरण,लिंग-आधारित छात्रावास सीटों की संख्या और संतुलन के प्रयास,नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पोटाकेबिन विद्यालयों और शिक्षकों से जुड़ी योजनाएं से संबंधित सवाल पूछा गयाl जिस पर केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री ने तथ्यों और प्रतिबद्धता से उत्तर दियाl जिसमें जानकारी दी कि बस्तर संभाग के सात जिलों में कुल 482 छात्रावासों में 32,146 सीटें स्वीकृत की गई हैं। बालक-बालिका छात्रावासों में संतुलन सुनिश्चित करते हुए कुल 309 बालक छात्रावासों में 19,992 सीटें तथा 173 बालिका छात्रावासों में 12,306 सीटें आरक्षित हैं।


पोटाकेबिन योजना के तहत छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कक्षा आठवीं तक के विद्यार्थियों को आवासीय व शैक्षणिक सुविधा दी जा रही है। वर्ष 2025-26 में इन स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के मानदेय को ₹10,000 से बढ़ाकर ₹16,000 कर दिया गया है। साथ ही वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 60 पोटाकेबिनो में 900 शिक्षकों की पदों का भी प्रावधान है।


केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए "धरती आबा जनजातीय ग्राम उन्नयन अभियान" के तहत बस्तर संभाग में 73 नए छात्रावास स्वीकृत किए गए हैं, जिससे शिक्षा,स्वास्थ्य और पोषण जैसी सुविधाएं और भी सुदृढ़ होंगी।


सांसद महेश कश्यप ने इस उत्तर के लिए केंद्र सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह जानकारी यह दर्शाती है कि सरकार जनजातीय विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही बस्तर के भविष्य का आधार है और सरकार इस दिशा में ठोस काम कर रही है।


संसद में विपक्ष का हंगामे को लेकर बस्तर सांसद महेश कश्यप ने कहा जहां एक ओर सरकार जनहित के सवालों का गंभीरता से उत्तर दे रही थी, वहीं दूसरी ओर संसद में विपक्ष द्वारा लगातार हंगामा किया गया। सदन में मानसून सत्र की शुरुआत जैसे ही हुई, विपक्ष ने मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय नारेबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में समय गंवाया। विपक्ष ने सेना की कार्रवाई "ऑपरेशन सिंदूर" को लेकर टिका टिप्पणी की जबकि रक्षा और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गंभीर विमर्श करने के बजाय विपक्ष का यह रवैया न केवल देश के जवानों का अपमान है,बल्कि संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन भी हैl संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है,जहां राष्ट्रीय नीतियों, सुरक्षा और जनकल्याण पर गंभीर विचार करना जरूरी है जिसमें विपक्ष को अपनी सहभागिता और कर्तव्य को सुनिश्चित करना चाहिए। ताकि लोकतंत्र की गरिमा बनी रहे। यदि विपक्ष के पास कोई असहमति या प्रश्न है, तो उसे जिम्मेदारी और तथ्यों के साथ उठाना चाहिए,न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए हंगामे और अवरोधों का सहारा लेना चाहिए।

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