रायपुर/सुकमा, 27 मई 2025 | विशेष संवाददाता छत्तीसगढ़ में जंगल की कमाई से जुड़ा एक और बड़ा खुलासा सामने आया है। सुकमा जिले में हुए 7 कर...
रायपुर/सुकमा, 27 मई 2025 | विशेष संवाददाता
छत्तीसगढ़ में जंगल की कमाई से जुड़ा एक और बड़ा खुलासा सामने आया है। सुकमा जिले में हुए 7 करोड़ रुपये के तेंदूपत्ता घोटाले में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 11 अधिकारियों और कर्मचारियों को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
गिरफ्तार आरोपी कौन-कौन?
जिन अधिकारियों पर शिकंजा कसा गया है, उनमें प्रमुख रूप से सुकमा वनमंडल के तीन डिप्टी रेंजर शामिल हैं:
- चैतूराम बघेल
- देवनाथ भारद्वाज
- पोड़ियामी इड़िमा (हिडमा)
इसके अलावा वनरक्षक मनीष कुमार बारसे और वनोपज समिति से जुड़े 7 प्रबंधक – पायम सत्यनारायण उर्फ शत्रु, मोहम्मद शरीफ, सीएच रमना (चिट्टूरी), सुनील नुप्पो, रवि कुमार गुप्ता, आयतू कोरसा और मनोज कवासी – को भी गिरफ्तार कर दंतेवाड़ा जिला न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
कैसे हुआ यह घोटाला?
यह पूरा मामला 2021-22 में तेंदूपत्ता संग्राहकों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन पारिश्रमिक (बोनस) से जुड़ा है। आरोप है कि तत्कालीन डीएफओ अशोक कुमार पटेल ने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ मिलकर एक सिंडीकेट बनाया और फर्जी दस्तावेजों के जरिए लाखों-करोड़ों की राशि को लूट लिया। यह पैसा उन मृत वनकर्मियों और आम लोगों के नाम पर दर्शाया गया, जिनका तेंदूपत्ता से कोई लेना-देना नहीं था।
पहले से जेल में है मास्टरमाइंड
ईओडब्ल्यू ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच की शुरुआत की और 17 अप्रैल 2025 को ही अशोक कुमार पटेल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। अब कार्रवाई का दायरा और भी बढ़ाया जा रहा है।
वन विभाग की भी बड़ी कार्रवाई
घोटाले की पुष्टि होते ही वन विभाग ने तत्काल 11 प्राथमिक वनोपज समितियों के प्रबंधकों को सेवा से पृथक कर दिया है। साथ ही संबंधित संचालक मंडलों को भंग कर, नए सिरे से पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह कदम दर्शाता है कि अब विभागीय स्तर पर भी सुधार की आवश्यकता को गंभीरता से लिया जा रहा है।
क्या आगे और गिरफ्तारियां होंगी?
ईओडब्ल्यू और एसीबी की संयुक्त टीम ने संकेत दिया है कि जांच अभी पूरी नहीं हुई है। इस घोटाले में अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की संलिप्तता की भी आशंका है, और आगामी दिनों में और गिरफ्तारी संभव है।
हरे सोने की लूट
तेंदूपत्ता को "हरे सोने" की संज्ञा दी जाती है। यह जंगल से जुड़ी आदिवासी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है। इस लूट में संलिप्त अधिकारी सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि आदिवासी समुदायों के जीवन-संघर्ष और आत्मनिर्भरता पर हमला कर रहे हैं।
सवाल यह भी उठता है – क्या केवल गिरफ्तारी से न्याय पूरा होगा? या फिर व्यवस्थागत पारदर्शिता और ई-गवर्नेंस की ओर ठोस पहल करनी होगी?
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