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विचारों के दीप स्तंभ : गुरुजी गोलवलकर की पुण्यतिथि पर श्रद्धा - सुमन

“राष्ट्र जिसका धर्म था, और संगठन थी साधना” आज, जब हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर , जिन्ह...

“राष्ट्र जिसका धर्म था, और संगठन थी साधना”

आज, जब हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर, जिन्हें स्नेहपूर्वक “गुरुजी” कहा जाता है, की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, तब यह अवसर केवल स्मरण का नहीं, बल्कि प्रेरणा के नवसंचार का है। [शुभांशु झा | 05/06/2025]


एक सन्यासी जो संगठन के पथ पर चला

  • जन्म: 19 फरवरी 1906, रामनगर (अब मध्यप्रदेश)
  • शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातकोत्तर
  • आध्यात्मिक झुकाव: रामकृष्ण मिशन के अनुयायी, स्वामी अखंडानंद से दीक्षा प्राप्त
  • संघ से जुड़ाव: डॉ. हेडगेवार के सान्निध्य में आए और 1937 में संघ के प्रचारक बने
  • सरसंघचालक नियुक्ति: 1940 में डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद

गुरुजी मूलतः वैज्ञानिक पृष्ठभूमि से थे, पर उनका मर्म आध्यात्मिकता और राष्ट्रधर्म से ओतप्रोत था। उन्होंने तपस्वी की तरह जीवन जिया और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा।


“राष्ट्र पहले, मैं बाद में”

गुरुजी का चिंतन स्पष्ट था — भारत एक हिंदू राष्ट्र है। लेकिन उनका हिंदुत्व संकीर्ण नहीं था, वह सांस्कृतिक एकात्मता पर आधारित था। उन्होंने लिखा:

“Hinduism is not a dogma, it's a way of life – a culture, a civilization.”

उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “We or Our Nationhood Defined” ने संघ की वैचारिक नींव को स्पष्ट दिशा दी। उन्होंने भारत को एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में देखा, जहाँ विविधता एकता का अंग है।


चुनौतियाँ और नेतृत्व

1947 का विभाजन, गांधीजी की हत्या के बाद संघ पर लगे प्रतिबंध, राजनीतिक बहिष्कार — इन सबके बीच गुरुजी अडिग रहे। उन्होंने अहिंसात्मक, लोकतांत्रिक मार्ग अपनाकर संघ को पुनर्जीवित किया।

“हम सत्ता के नहीं, संस्कारों के साधक हैं।”


राष्ट्र निर्माण में योगदान

  • लाखों युवाओं को अनुशासित, सेवा-भावी जीवन की ओर प्रेरित किया
  • संघ की शाखाओं का राष्ट्रीय विस्तार कराया
  • संघ परिवार के अन्य संगठनों — विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती — की नींव रखी गई
  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को राजनीतिक विमर्श में स्थापित किया

गुरुजी की वाणी में राष्ट्रधर्म

“राष्ट्र की सेवा ही परम तपस्या है। व्यक्ति के अस्तित्व का सार राष्ट्र की भलाई में है।”

उनकी विचारशीलता में संतुलन था — न आक्रोश, न आक्रामकता, बल्कि विवेक और धैर्य। वे कहते थे:

“अगर भारत को महान बनाना है तो सबसे पहले ‘मैं’ को हटाकर ‘हम’ को स्थापित करना होगा।”


आज के संदर्भ में गुरुजी की प्रासंगिकता

आज जबकि राष्ट्र नये शिखरों की ओर अग्रसर है, गुरुजी की विचारधारा मार्गदर्शन का दीपस्तंभ है। भारत की आत्मा को समझने के लिए गुरुजी को पढ़ना और जीना आवश्यक है।

उनका जीवन संदेश देता है कि केवल संगठन नहीं, संघटनात्मक चरित्र भी आवश्यक है।


श्रद्धांजलि या संकल्प?

गुरुजी की पुण्यतिथि केवल स्मरण का दिन नहीं, संकल्प का दिवस है —
संकल्प कि:

  • हम राष्ट्र को सर्वोपरि मानें,
  • विभाजनकारी विचारों से ऊपर उठें,
  • सेवा, समर्पण और संस्कार से जीवन जीयें।

🌺 गुरुजी को शत-शत नमन। उनके सपनों का भारत गढ़ने हेतु हम कटिबद्ध हैं। 🌺


शुभांशु झा, 05/06/2025

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