100 से अधिक बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया जवानों ने, नक्सली गढ़ पूवर्ती में उम्मीदों की नई सुबह: बस्तर : देश में पहली बार नक्सल प्रभावित ...
100 से अधिक बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया जवानों ने, नक्सली गढ़ पूवर्ती में उम्मीदों की नई सुबह:
बस्तर : देश में पहली बार नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शिक्षा की एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल सामने आई है। छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले के सबसे संवेदनशील और कभी आतंक के पर्याय रहे गाँव पूवर्ती, जो कुख्यात नक्सली नेता हिड़मा का पैतृक स्थान है, अब आशा और शिक्षा का नया केंद्र बन रहा है।
यह बदलाव आया है केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की एक अद्वितीय पहल से, जिसे स्थानीय लोग अब "सीआरपीएफ का गुरुकुल" कहने लगे हैं। नक्सलियों के साए में जीवन बिताने वाले बच्चों को अब शिक्षा का उजाला मिल रहा है। 100 से अधिक बच्चों की पढ़ाई, देखभाल और मार्गदर्शन की जिम्मेदारी खुद जवानों ने अपने कंधों पर उठा ली है।
शिक्षा से शांति की ओर:
जहाँ एक समय पूवर्ती नक्सल गतिविधियों का केंद्र था, अब वहीं बच्चों की पाठशाला की घंटी गूंज रही है। यह देश का पहला ऐसा मॉडल है, जहाँ सुरक्षा बल केवल बंदूक नहीं, बल्कि किताबें भी थमा रहे हैं। सीआरपीएफ के जवान अब शिक्षक, अभिभावक और मार्गदर्शक बनकर बच्चों को उज्जवल भविष्य की राह दिखा रहे हैं।
अफसरों की पहुंच, भरोसे की बुनियाद:
इस पहल का असर इतना व्यापक हो गया है कि अब तक जिन इलाकों में अफसरों की आमद असंभव मानी जाती थी, वहां भी अधिकारी पहुंचने लगे हैं। यह सिर्फ सुरक्षा की बात नहीं है, यह विश्वास की नींव पर खड़ा होता नया सामाजिक संवाद है।
बस्तर बना मिसाल:
बस्तर अब केवल संघर्ष का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव और शिक्षा के ज़रिए स्थायी शांति की मिसाल बन रहा है। देश के अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए भी यह मॉडल प्रेरणा बन सकता है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया:
गांव के बुजुर्ग कहते हैं, "जहाँ पहले गोलियों की आवाज़ आती थी, अब वहां बच्चों की मुस्कान सुनाई देती है।" माता-पिता गर्व से अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, क्योंकि उन्हें अब पता है कि उनके बच्चे भी डॉक्टर, शिक्षक या अफसर बन सकते हैं।
यह सिर्फ स्कूल नहीं, एक क्रांति है। सीआरपीएफ की यह पहल साबित करती है कि बंदूक की जगह जब किताबें थामी जाती हैं, तो नक्सलवाद की जड़ें भी हिल सकती हैं।
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