विशेष विश्लेषण | शुभांशु झा | 4thColumn.in शशि थरूर, चार बार के लोकसभा सांसद और पूर्व राजनयिक (शशि थरूर को "पूर्व राजनयिक" (f...
विशेष विश्लेषण | शुभांशु झा | 4thColumn.in
शशि थरूर, चार बार के लोकसभा सांसद और पूर्व राजनयिक (शशि थरूर को "पूर्व राजनयिक" (former diplomat) इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में लंबे समय तक उच्च पदों पर कार्यरत रहे हैं, लेकिन वे कभी भारतीय विदेश सेवा (IFS) के सदस्य नहीं रहे।), कांग्रेस पार्टी के भीतर एक दुर्लभ राजनीतिक पहेली बन चुके हैं। वे न केवल लोकप्रिय हैं, बल्कि मुखर भी हैं — और यही दोनों विशेषताएँ उन्हें पार्टी के पारंपरिक ढांचे से टकराव की स्थिति में लाती हैं। जहां एक ओर थरूर केरल में कांग्रेस का सबसे चमकता चेहरा हैं, वहीं दूसरी ओर उनके विचार, बयान और स्वतंत्र सोच पार्टी हाईकमान के लिए लगातार असहजता का कारण बनते जा रहे हैं।
थरूर की मौजूदगी: क्यों कांग्रेस के लिए अहम?
- लगातार चुनावी सफलता: शशि थरूर 2009, 2014, 2019 और अब 2024 में लगातार तिरुवनंतपुरम से सांसद चुने गए हैं। 2019 में उन्होंने BJP के कद्दावर नेता कुम्मनम राजशेखरन को 99,989 वोटों से हराया था। 2024 में उन्होंने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को पराजित कर अपनी पकड़ और मजबूत की है।
- जातीय समीकरण में मजबूती: थरूर नायर समुदाय से आते हैं, जो केरल में लगभग 14-15% की जनसंख्या के साथ एक निर्णायक सामाजिक समूह है। सबरीमाला मंदिर जैसे मुद्दों पर उनकी संतुलित राय ने उन्हें हिंदू मध्यम वर्ग में लोकप्रिय बनाए रखा है, जबकि मुस्लिम और ईसाई समुदायों में भी उनकी स्वीकृति बनी हुई है।
- मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार: यदि कांग्रेस 2026 में सत्ता में आती है तो थरूर को मुख्यमंत्री पद का सबसे मजबूत चेहरा माना जा रहा है। मौजूदा वामपंथी मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के खिलाफ एक करिश्माई, शहरी, और वैश्विक दृष्टिकोण रखने वाला चेहरा ही कांग्रेस को बढ़त दिला सकता है।
- सोशल मीडिया और वैश्विक प्रभाव: थरूर के ट्विटर/X पर 88 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। वे Oxford Union, TED और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी किताबें और भाषण उन्हें "ग्लोबल इंटेलेक्चुअल" के रूप में स्थापित करते हैं।
- पार्टी के भीतर टकराव: गांधी परिवार के करीबी के. सी. वेणुगोपाल और रमेश चेन्निथला जैसे नेता थरूर के उदय से असहज हैं। अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खरगे के खिलाफ खड़ा होना इसी असहजता का प्रतीक है। यदि कांग्रेस थरूर को दरकिनार करती है, तो यह BJP को यह कहने का अवसर देगा कि पार्टी प्रतिभा को सम्मान नहीं देती।
क्या थरूर एक 'मिसाइल' हैं जो भीतर से ही विस्फोट कर सकते हैं?
थरूर को समर्थन देना कांग्रेस के लिए रणनीतिक बाध्यता बन चुकी है। वे पार्टी में 'आउटसाइडर इनसाइडर' की भूमिका निभा रहे हैं — जो सिस्टम के भीतर रहते हुए भी सिस्टम पर सवाल उठाते हैं। भाजपा उनके हर बयान को कांग्रेस के अंतर्विरोध के रूप में दिखाती है, जबकि वामपंथी दल उनके साथ वैचारिक संवाद बनाए हुए हैं।
उन पर सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर छींटाकशी होती रही है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने अब तक कोई सख्त रुख नहीं अपनाया है — शायद इसलिए क्योंकि वे जानते हैं कि थरूर जैसे नेता का नुकसान पूरे केरल में कांग्रेस को भारी पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
थरूर न तो पूरी तरह पार्टी के भीतर हैं, न ही बाहर। वे न तो परंपरागत हैं, न ही पूरी तरह विद्रोही। लेकिन वे कांग्रेस के सबसे अपरिहार्य नेताओं में से एक बन चुके हैं। यदि पार्टी उन्हें 'सहन' करती रही तो वे भविष्य की नींव रख सकते हैं, और अगर अस्वीकार करती है तो वह अंदरूनी विस्फोट की शुरुआत हो सकती है।
थरूर फैक्टर अब महज एक व्यक्ति नहीं, बल्कि कांग्रेस की रणनीतिक परीक्षा बन चुका है।
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