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ऑपरेशन सिन्दूर : नो कॉम्प्रोमाईज़ डॉक्ट्रिन (आलेख: अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय मंत्री)

  ऑपरेशन सिन्दूर: नीति में स्पष्टता, रणनीति में संतुलन -अश्विनी वैष्णव / 14 मई, 2025 (लेखक केंद्रीय मंत्री हैं — रेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचन...

 


ऑपरेशन सिन्दूर: नीति में स्पष्टता, रणनीति में संतुलन
-अश्विनी वैष्णव / 14 मई, 2025
(लेखक केंद्रीय मंत्री हैं — रेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग)1994 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए; बालासोर तथा कटक जिलों के जिला कलक्टर सहित विभिन्न पदों पर रहे; 2004 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री, स्व . श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव)

 

पहलगाम में हुए हृदयविदारक नरसंहार ने एक बार फिर यह स्मरण करा दिया कि आतंकवाद न केवल जीवन का हनन करता है, वह राष्ट्र की आत्मा को भी आघात पहुँचाता है। किंतु इस बार भारत की प्रतिक्रिया पूर्ववर्ती परिपाटियों से भिन्न रही — न आवेश, न प्रतीक्षा; न संवाद का आग्रह, न कूटनीतिक अस्पष्टता। केंद्र सरकार ने इस चुनौती का उत्तर ऑपरेशन सिन्दूर के माध्यम से दिया — एक ऐसा दृष्टिकोण जो अब केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की एक नई संकल्पना का नाम बन गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन में इस सिद्धांत की नींव स्पष्ट रूप से रखी गई। यह एक ऐसी नीति है जो घटनाओं की प्रतिक्रिया मात्र नहीं, बल्कि व्यापक रणनीतिक सोच का परिणाम है। हर निर्णय — सिंधु जल संधि का स्थगन हो अथवा सीमापार आतंकी अड्डों पर निशाना साधते सैन्य अभियान — गहराई से सोचा-समझा और समय के अनुरूप था। इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी विशेषता थी इसकी गोपनीयता और रणनीतिक अप्रत्याशितता, जिसने विरोधियों को चौंकाया और भारत की इच्छाशक्ति को नई विश्वसनीयता दी।

प्रधानमंत्री ने कहा, "ऑपरेशन सिन्दूर केवल एक कार्रवाई नहीं, यह भारत की सामूहिक भावना का प्रतीक है।" वास्तव में, यह एक स्पष्ट संकेत है कि अब आतंकवाद के प्रति भारत की नीति में कोई दुविधा या अस्पष्टता नहीं रहेगी।

इस नवगठित सिद्धांत के तीन स्पष्ट स्तंभ हैं:

1. निर्णायक प्रतिकार — भारत के समय, भारत की शर्तों पर:
अब भारत किसी भी आतंकी हमले को केवल सहन नहीं करेगा। वह प्रतिकार करेगा — निर्णायक रूप से, और पूरी तैयारी के साथ। यह प्रतिकार केवल सीमित सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि व्यापक नीति, कूटनीति और आंतरिक सुरक्षा के समन्वय से परिभाषित होगा।

2. परमाणु धमकी के आगे अस्वीकृति:
भारत यह मान कर चल रहा है कि परमाणु हथियारों की आड़ लेकर कोई राष्ट्र यदि आतंक को प्रश्रय देता है, तो वह अब इस रणनीतिक पैंतरेबाज़ी से बच नहीं पाएगा। भारत की प्रतिक्रिया अब न तो डरी हुई होगी और न ही धुंधली।

3. आतंकवादी और संरक्षक — अब कोई भेद नहीं:
यह उस नैतिक आग्रह का विस्तार है जो कहता है कि हिंसा में सहभागी केवल हथियार उठाने वाले नहीं होते, बल्कि वे भी होते हैं जो धन, जमीन, प्रचार और राजनीतिक संरक्षण के रूप में पोषण देते हैं। अब भारत की नीति ऐसे सभी तत्वों को एक ही कठघरे में खड़ा करती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इसे वैश्विक संदर्भ में भी रखा। उनका यह कथन — कि जो राष्ट्र आतंक के संरक्षक बनते हैं, वे अंततः आत्मघाती रास्ते पर होते हैं — केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक नीति वक्तव्य भी है। भारत अब उस कूटनीतिक औपचारिकता से बाहर आ गया है जिसमें आतंक के संरक्षकों से "सौहार्दपूर्ण" संवाद की आकांक्षा रहती थी।

ऐसा नहीं कि यह बदलाव अचानक आया हो। 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 के बालाकोट हमले और अब ऑपरेशन सिन्दूर — इन सभी कार्रवाइयों में एक क्रमबद्ध नीति-स्पष्टता दिखाई देती है। हर घटना, हर उत्तर, भारत की उस मानसिकता को दर्शाता है जहाँ अब शांति की खोज समझौते से नहीं, सम्मान से जुड़ी है।

इस बार का संदेश सीधा है — आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते। अटारी-वाघा सीमा बंद हो चुकी है, व्यापार निलंबित है, वीज़ा रद्द हैं, और सिंधु जल संधि भी अस्थायी रूप से विराम पर है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा, “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।” यह एक नीतिगत वाक्य है, भावनात्मक नहीं — और यही इसकी गंभीरता है।

पहलगाम की घटना के बाद भारत की प्रतिक्रिया भावुक नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण रही। यही कारण है कि यह एक असाधारण क्षण बन गया है — जब देश ने एक स्वर में कहा, अब और नहीं

ऑपरेशन सिन्दूर एक अंत नहीं है। यह उस नई शुरुआत की उद्घोषणा है जहाँ भारत अपनी सुरक्षा को लेकर न मितभाषी रहेगा, न मृदु। अब clarity है, courage है, और सबसे बढ़कर — sankalp है।

(लेखक केंद्रीय मंत्री हैं — रेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग) 

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