आंगनबाड़ियों में गैस रिफिलिंग के लिए नहीं मिल रहा बजट, सहायिकाएं अब भी लकड़ी से पकाती हैं खाना: दंतेवाड़ा : जिले में संचालित 1,000 से अधि...
आंगनबाड़ियों में गैस रिफिलिंग के लिए नहीं मिल रहा बजट, सहायिकाएं अब भी लकड़ी से पकाती हैं खाना:
दंतेवाड़ा : जिले में संचालित 1,000 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में से आधे से ज्यादा आज भी 21वीं सदी में पारंपरिक चूल्हों पर ही बच्चों का भोजन तैयार कर रहे हैं। जंगल से लकड़ी लाकर सहायिकाएं धुएं और गर्मी के बीच भोजन पकाती हैं, क्योंकि केंद्रों को अब तक गैस सिलेंडर की रिफिलिंग के लिए बजट नहीं मिला है।
सरकार की ओर से सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को एक-एक गैस सिलेंडर और गैस चूल्हा जरूर उपलब्ध कराया गया था, लेकिन नियमित रिफिलिंग के लिए कोई स्थायी बजट निर्धारित नहीं किया गया। इसके चलते आधे से अधिक केंद्रों में रसोई गैस खत्म हो चुकी है और सहायिकाएं मजबूरी में फिर से लकड़ी जलाकर खाना बनाने को विवश हैं।
इस स्थिति से बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लकड़ी के धुएं से न केवल सहायिकाओं और बच्चों की सेहत खतरे में है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह चिंताजनक है। दूसरी ओर सहायिकाएं बताती हैं कि लकड़ी लाने और जलाने में समय और श्रम दोनों की भारी खपत होती है, जिससे बच्चों की देखभाल पर भी असर पड़ता है।
क्या कहती हैं सहायिकाएं:
"हम दिन में दो बार जंगल से लकड़ी लाते हैं और फिर खाना बनाते हैं। गैस से काम जल्दी होता था, लेकिन अब महीनों से सिलेंडर खाली पड़ा है," – एक सहायिका ने नाम न बताने की शर्त पर बताया।
प्रशासन से अपील:
स्थानीय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द गैस रिफिलिंग के लिए आवश्यक बजट जारी किया जाए, ताकि बच्चों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके।
निष्कर्ष:
सरकारी योजनाएं जमीनी स्तर तक पहुंची तो हैं, लेकिन उनका टिकाऊ क्रियान्वयन आज भी चुनौती बना हुआ है। आंगनबाड़ी जैसे पोषण केंद्रों को केवल उपकरण देकर जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना समाधान नहीं है। आवश्यकता है नियमित निगरानी और बजट के स्थायी प्रावधान की, ताकि भविष्य की पीढ़ियों का पोषण वास्तव में सुनिश्चित हो सके।
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