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छत्तीसगढ़ में शिक्षा का नया अध्याय: शिक्षा विभाग ने शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण को बताया बाल शिक्षा के हित में अहम कदम

शिक्षा का अधिकार अधिनियम बना आधार, गुणवत्ता और उपस्थिति पर फैली भ्रांतियों का हुआ निराकरण: रायपुर :  छत्तीसगढ़ की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को...


शिक्षा का अधिकार अधिनियम बना आधार, गुणवत्ता और उपस्थिति पर फैली भ्रांतियों का हुआ निराकरण:

रायपुर : छत्तीसगढ़ की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को अधिक समावेशी, सुसंगठित और गुणवत्तापूर्ण बनाने की दिशा में शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे युक्तियुक्तकरण अभियान को लेकर उठे सवालों पर अब स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि यह प्रक्रिया बच्चों को समान शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के क्रियान्वयन को गति देने के लिए अपनाई गई है।

शिक्षा विभाग ने कहा कि वर्ष 2008 में लागू किए गए पुराने सेटअप की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता नहीं रह गई है। अब स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित मानकों पर आधारित है, जिसमें छात्र संख्या के आधार पर शिक्षक संख्या का निर्धारण स्पष्ट रूप से किया गया है।


बहुकक्षा शिक्षण बना समाधान:

विभाग ने स्पष्ट किया कि पांच कक्षाओं को दो शिक्षकों द्वारा पढ़ाने की प्रक्रिया में बहुकक्षा शिक्षण (multi-grade teaching) को एक सक्षम समाधान के रूप में अपनाया गया है। इसके लिए शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है, जिससे वे एक साथ कई कक्षाओं को प्रभावी रूप से पढ़ा सकें। यह व्यवस्था न केवल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करती है, बल्कि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में भी सक्षम है।


आंकड़ों से हुआ स्पष्ट – शिक्षक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध:

राज्य के 30,700 प्राथमिक विद्यालयों में से 17,000 विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात 20 से भी कम है। यह दर्शाता है कि राज्य में शिक्षकों की संख्या छात्रों की अपेक्षा में संतोषजनक है।


भ्रांतियों का हुआ खंडन:

कुछ शैक्षिक संगठनों द्वारा यह आशंका जताई गई थी कि 60 से कम नामांकन वाली 20,000 से अधिक स्कूलें एकल-शिक्षकीय बन जाएंगी। शिक्षा विभाग ने इसे पूरी तरह भ्रमजनक बताया है और स्पष्ट किया है कि प्रत्येक ऐसी शाला में दो शिक्षकों की व्यवस्था की गई है, जिसमें प्रधान पाठक भी शामिल है।


युक्तियुक्तकरण का उद्देश्य – समानता और गुणवत्ता:

विभाग ने दोहराया कि यह प्रक्रिया शिक्षकों की संख्या घटाने के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा में समान अवसर और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य यह है कि कोई भी विद्यालय छात्र-शिक्षक अनुपात के मानक से नीचे


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