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आंखों में 1971 की झलक, आज भी सबक जरूरी:

  रिटायर्ड BSF जवानों ने सुनाए मॉकड्रिल के किस्से, बोले - सायरन बजता था तो अंधेरा छा जाता था: भिलाई :  पहलगाम आतंकी हमले और पाकिस्तान से बढ़...

 

रिटायर्ड BSF जवानों ने सुनाए मॉकड्रिल के किस्से, बोले - सायरन बजता था तो अंधेरा छा जाता था:

भिलाई : पहलगाम आतंकी हमले और पाकिस्तान से बढ़ते तनाव के बीच 7 मई बुधवार को देशभर के 244 स्थानों पर सुरक्षा तैयारियों की मॉकड्रिल की गई। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भी यह अभ्यास हुआ। इसी दौरान जिले के बुजुर्गों और रिटायर्ड BSF जवानों को 1971 के भारत-पाक युद्ध की यादें ताजा हो गईं।

वरिष्ठ नागरिक रामप्रसाद वर्मा (72) ने बताया, “1971 में जब सायरन बजता था, तो पूरा मोहल्ला लाइट बंद कर अंधेरे में छिप जाता था। बच्चों को चुप कराना पड़ता था, ताकि दुश्मन को कोई हलचल न दिखे।”

रिटायर्ड BSF हेड कांस्टेबल महेश यादव ने कहा, “हमने तब मॉकड्रिल को मजाक नहीं समझा था। अब भी नहीं समझना चाहिए। खतरा कब कहां से आ जाए, कोई नहीं जानता। ये अभ्यास हमें तैयार रखता है।”


मॉकड्रिल में क्या हुआ?

दुर्ग में मॉकड्रिल के दौरान एयर राइड अटैक, रेस्क्यू ऑपरेशन और अलर्ट सायरन की प्रक्रिया दोहराई गई। लोगों को बताया गया कि हमले की स्थिति में उन्हें क्या करना है और कहां सुरक्षित रहना है।


सबक आज भी उतना ही जरूरी:

1971 की लड़ाई भले पीछे छूट गई हो, लेकिन सुरक्षा की अहमियत आज भी वैसी ही है। बुजुर्गों की यादों ने यह साफ कर दिया कि समय बदला है, पर खतरे की प्रकृति अब भी उतनी ही गंभीर है।




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