सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी: शरिया अदालतों को भारतीय कानून में मान्यता नहीं, उनके फैसले बाध्यकारी नहीं: नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने ए...
सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी: शरिया अदालतों को भारतीय कानून में मान्यता नहीं, उनके फैसले बाध्यकारी नहीं:
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि देश में 'काज़ी अदालत', 'दारुल कज़ा' या 'शरिया अदालत' जैसे धार्मिक निकायों को भारतीय कानून के तहत कोई कानूनी मान्यता नहीं है। ऐसे निकायों द्वारा दिए गए फतवे या निर्णय वैधानिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं और किसी व्यक्ति पर उन्हें मानने का दबाव नहीं डाला जा सकता।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दायर अपील की सुनवाई के दौरान की। महिला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें फैमिली कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा गया था।
पीठ ने 2014 में 'विश्व लोचन मदन बनाम भारत सरकार' मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि शरीयत अदालतें और उनके द्वारा जारी फतवे कानूनी रूप से मान्य नहीं हैं।
इस फैसले से स्पष्ट है कि भारत में धार्मिक या गैर-आधिकारिक निकायों के आदेश संविधान और विधि व्यवस्था से ऊपर नहीं हो सकते।
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