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अबूझमाड़ की शिक्षा क्रांति: नक्सल प्रभावित गांवों के लोगों ने चंदा कर खोला आवासीय स्कूल

  अबूझमाड़ की शिक्षा क्रांति: नक्सल प्रभावित गांवों के लोगों ने चंदा कर खोला आवासीय स्कूल: नारायणपुर (छत्तीसगढ़): शिक्षा की रोशनी फैलाने के...

 अबूझमाड़ की शिक्षा क्रांति: नक्सल प्रभावित गांवों के लोगों ने चंदा कर खोला आवासीय स्कूल:

नारायणपुर (छत्तीसगढ़): शिक्षा की रोशनी फैलाने के लिए छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ क्षेत्र में एक अनूठी पहल शुरू हुई है। नक्सल प्रभावित इस इलाके के 12 गांवों के लोगों ने आपसी सहयोग से एक आवासीय स्कूल की स्थापना की है। यह स्कूल, जिसे ‘भूमकाल आवासीय स्कूल’ नाम दिया गया है, उम्मीद की नई किरण बन रहा है।

इस स्कूल की खासियत यह है कि इसे पूरी तरह से स्थानीय ग्रामीणों के योगदान से संचालित किया जा रहा है। यहां के बच्चों के लिए न तो आलीशान क्लासरूम हैं और न ही आधुनिक सुविधाएं, लेकिन शिक्षा के प्रति जज्बा और समर्पण किसी से कम नहीं। टीन के चद्दरों से बने क्लासरूम, मचान पर सोने की व्यवस्था और चटाई पर बैठकर भोजन करने वाले ये बच्चे ज्ञान की नई राह पर आगे बढ़ रहे हैं।


गांववालों की मेहनत से बना स्कूल:

अबूझमाड़ का यह क्षेत्र लंबे समय से शिक्षा और विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ था, लेकिन अब ग्रामीण खुद बदलाव की इबारत लिख रहे हैं। उन्होंने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद बच्चों की शिक्षा के लिए चंदा इकट्ठा किया और इस स्कूल को शुरू किया। इस पहल से नारायणपुर जिले के रेकावाया गांव और आसपास के अन्य इलाकों के बच्चों को पढ़ाई का अवसर मिल रहा है।


बच्चों को मिल रही नई राह:

बुनियादी सुविधाओं की कमी के बावजूद, इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बड़े सपने देख रहे हैं। गांववाले खुद शिक्षकों की भूमिका निभा रहे हैं, और बाहर से भी कुछ समाजसेवी लोग यहां आकर बच्चों को पढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं। यह स्कूल न केवल शिक्षा दे रहा है बल्कि बच्चों को एक सुरक्षित माहौल भी प्रदान कर रहा है, जिससे वे नक्सलवाद और अशिक्षा के दुष्चक्र से बाहर निकल सकें।


सरकारी मदद की दरकार:

ग्रामीणों की इस अनूठी पहल की चर्चा अब दूर-दूर तक होने लगी है। लोग इसे आत्मनिर्भरता और शिक्षा के प्रति समर्पण का बेहतरीन उदाहरण मान रहे हैं। हालांकि, यह स्कूल अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि सरकार और समाजसेवी संस्थाएं आगे आकर इस पहल को और मजबूती दें, ताकि बच्चों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।

अबूझमाड़ के घने जंगलों के बीच चल रहा यह स्कूल एक प्रेरणा है, जो दिखाता है कि अगर हौसला और इच्छाशक्ति हो तो किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है।


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