आदिवासी क्षेत्रों में दुष्कर्म पीड़िताओं की पीड़ा: पहचान के अभाव में बच्चों का भविष्य अधर में जन्म और जाति प्रमाण पत्र न बनने से शिक्षा एव...
आदिवासी क्षेत्रों में दुष्कर्म पीड़िताओं की पीड़ा: पहचान के अभाव में बच्चों का भविष्य अधर में जन्म और जाति प्रमाण पत्र न बनने से शिक्षा एवं सरकारी योजनाओं से वंचित हो रहे बच्चे:
छत्तीसगढ : में आदिवासी क्षेत्रों में दुष्कर्म पीड़िताओं और उनके बच्चों की परेशानियां थमने का नाम नहीं ले रही हैं। दुष्कर्म के कारण जन्मे बच्चों के पिता का नाम न होने से उनके जन्म प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं, जिससे उन्हें शिक्षा, सरकारी योजनाओं और अन्य मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है।
शिक्षा में रुकावटें:
इन बच्चों को स्कूलों में दाखिले के समय मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि बिना जन्म प्रमाण पत्र के प्रवेश मिलना कठिन हो जाता है। वहीं, जाति प्रमाण पत्र न होने से उन्हें आरक्षित वर्ग के तहत मिलने वाले लाभों से भी वंचित रहना पड़ता है।
सरकारी योजनाओं से भी वंचित:
बिना प्रमाण पत्रों के ये बच्चे राशन कार्ड, छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य सुविधाओं और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। यह समस्या न केवल उनके अधिकारों को बाधित कर रही है बल्कि उनके समग्र विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।
समाधान की जरूरत:
विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रशासन को इस समस्या का स्थायी समाधान निकालने की जरूरत है। विशेष प्रक्रिया के तहत इन बच्चों को आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें और बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकें।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी:
इस गंभीर मुद्दे को हल करने के लिए प्रशासन, समाज और कानून व्यवस्था को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। पीड़िताओं को न्याय दिलाने के साथ-साथ उनके बच्चों के अधिकारों की भी रक्षा होनी चाहिए, ताकि वे भी सम्मानजनक जीवन जी सकें।
मानव तस्करी का शिकार:
छत्तीसगढ़ की नीरा भगत जब 11 साल की थी तो मानव तस्करी का शिकार होकर दिल्ली पहुंच गई। वहां 5 साल उससे दुष्कर्म हुआ। जब गर्भवती हुई तो कचरे की तरह फेंक दिया गया। वह किसी तरह अपने गांव पहुंची। घर वाले लौटने की आस छोड़ चुके थे। उसे दोबारा देख पिता ने गले
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