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बस्तर के आदिवासियों के जल, जंगल और ज़मीन के अधिकार: संघर्ष और संरक्षण

लेख : बस्तर, छत्तीसगढ़ का एक आदिवासी बहुल क्षेत्र, जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों के लिए जाना जाता है। यहां की आदिवासी जनजातियां सदियों से प...

लेख : बस्तर, छत्तीसगढ़ का एक आदिवासी बहुल क्षेत्र, जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों के लिए जाना जाता है। यहां की आदिवासी जनजातियां सदियों से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। जंगल उनकी आजीविका, संस्कृति और पहचान का अभिन्न हिस्सा है। जल, जंगल और ज़मीन पर अधिकार न केवल उनकी आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हालांकि, औद्योगिकीकरण, खनन और वनों के अतिक्रमण ने आदिवासियों के इन अधिकारों पर गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। कई बार विकास परियोजनाओं के नाम पर आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित किया गया है। इसके परिणामस्वरूप, उनकी आजीविका प्रभावित हुई है और उनके पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहरों को नुकसान पहुंचा है।

भारत सरकार ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) और वन अधिकार अधिनियम, 2006 जैसे कानूनों के जरिए आदिवासियों को उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास किया है। इन कानूनों के तहत आदिवासियों को वनों के उपयोग, प्रबंधन और संरक्षण का अधिकार दिया गया है। साथ ही, ग्राम सभाओं को निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है।

बस्तर में जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना होगा। केवल आदिवासियों के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए ही उनके पारंपरिक जीवन और प्रकृति के साथ उनके सामंजस्य को बनाए रखा जा सकता है।


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