छत्तीसगढ़ की रजत जयंती : पहचान, उपलब्धियाँ और भविष्य की दिशा ✍️ डॉ. रूपेन्द्र कवि (मानवविज्ञानी, साहित्यकार, समाजसेवी — वर्तमान म...
छत्तीसगढ़ की रजत जयंती : पहचान, उपलब्धियाँ और भविष्य की दिशा
1 नवम्बर 2000 को भारत के संघीय ढाँचे में एक नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ। यह केवल भौगोलिक पुनर्गठन नहीं था, बल्कि स्थानीय जनभावनाओं, सांस्कृतिक अस्मिता और स्वशासन के संवैधानिक अधिकार का प्रतीक था। वर्ष 2025 में जब छत्तीसगढ़ अपनी रजत जयंती मना रहा है, तब यह अवसर आत्ममंथन का है — हमने क्या प्राप्त किया, क्या चुनौतियाँ शेष हैं, और आगे की दिशा क्या होनी चाहिए।
पहचान की खोज
छत्तीसगढ़ की असली पहचान इसकी लोकसंस्कृति, जनजातीय विरासत, प्राकृतिक संपदा और मानवीय सरलता में निहित है।
“छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” केवल एक कहावत नहीं, बल्कि राज्य की आत्मा का प्रतीक है।
यहां के लोकनृत्य — पंथी, सुवा, करमा, राऊत नाचा — और छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य ने राज्य को राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्र पर एक विशिष्ट पहचान दी है। भोजन, बोली, कला और सौहार्द की यह भूमि भारत की विविधता में अपनी अनोखी छाप छोड़ती है।
पच्चीस वर्षों की उपलब्धियाँ
- कृषि क्षेत्र में राज्य आज “धान का कटोरा” कहलाता है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना और गोधन न्याय योजना ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किया है।
- खनिज और उद्योग क्षेत्र ने छत्तीसगढ़ को देश का ऊर्जा केंद्र बनाया। लौह, कोयला और इस्पात उत्पादन में राज्य अग्रणी है।
- स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में दूरस्थ अंचलों तक सेवाएँ पहुँचाने के प्रयास हुए हैं। हाट-बाजार क्लिनिक जैसी योजनाएँ नवाचार का उदाहरण हैं।
- वनाधिकार और पर्यावरण संरक्षण में राज्य ने समुदाय आधारित भागीदारी की दिशा में संवैधानिक रूप से महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
जो अधूरा है
- नक्सल प्रभावित क्षेत्र अब भी विकास की मुख्यधारा से पूरी तरह नहीं जुड़ पाए हैं।
- शिक्षा की गुणवत्ता और युवा रोजगार गंभीर विषय हैं।
- औद्योगिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन के बीच सामंजस्य आवश्यक है।
- ग्रामीण-शहरी असमानता और प्रशासनिक पारदर्शिता को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
संविधान के आलोक में आगे की दिशा
भारत का संविधान हमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता का मार्ग दिखाता है।
छत्तीसगढ़ का भविष्य इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए —
- विकास का लाभ हर नागरिक तक पहुँचे, चाहे वह आदिवासी अंचल का हो या शहरी क्षेत्र का।
- संसाधनों का उपयोग पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के साथ हो।
- स्थानीय स्वशासन को सशक्त कर “जनभागीदारी आधारित शासन” को वास्तविक रूप दिया जाए।
निष्कर्ष
रजत जयंती का यह वर्ष गर्व और आत्ममंथन दोनों का अवसर है। छत्तीसगढ़ ने बीसवीं सदी के अंत में अपने अस्तित्व का सपना देखा और इक्कीसवीं सदी में उसे साकार किया। अब आवश्यकता है कि यह विकास यात्रा संवैधानिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और समावेशी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़े।
राज्य की असली सफलता तब होगी जब हर छत्तीसगढ़िया यह कह सके —
“विकास मेरा भी है, और इस माटी का भी।”
मानवविज्ञानी, साहित्यकार एवं समाजसेवी
(वर्तमान पद : उप सचिव, संवैधानिक प्रकोष्ठ, राज्यपाल सचिवालय, छत्तीसगढ़)
यह लेख लेखक के व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत करता है, न कि उनके पद या कार्यालय की आधिकारिक अभिव्यक्ति।


कोई टिप्पणी नहीं