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PVTGs में पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ: तथ्य, अनुभव और राष्ट्रीय नीति संवाद

PVTGs में पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ: तथ्य, अनुभव और राष्ट्रीय नीति संवाद दिनांक: 18 जुलाई 2025 भारत सरकार के समावेशी, सहभ...

PVTGs में पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ: तथ्य, अनुभव और राष्ट्रीय नीति संवाद

दिनांक: 18 जुलाई 2025

भारत सरकार के समावेशी, सहभागी एवं सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील विकास मॉडल के अनुरूप, सोसाइटी फॉर एम्पावरमेंट ने दिनांक 18 जुलाई 2025 को एक उच्चस्तरीय राष्ट्रीय ऑनलाइन नीति संवाद का आयोजन किया, जिसका विषय था: "विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) में पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ: तथ्य एवं संभावनाएँ"

यह संवाद जनजातीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के दस्तावेजीकरण, मान्यता और नीति समावेशन पर केंद्रित था।

🔷 उद्घाटन वक्तव्य

इस संवाद का उद्घाटन प्रोफेसर एस. नारायण, प्रख्यात मानवविज्ञानी एवं जनजातीय नीति विशेषज्ञ, द्वारा किया गया। उन्होंने नीति के स्तर पर पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को स्थान देने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा:

"पारंपरिक चिकित्सकीय पद्धतियाँ जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता, प्राकृतिक संतुलन और लोक स्वास्थ्य का अद्वितीय संगम हैं। इनका संरक्षण एवं संस्थागत समावेश, भारत की नीति-योजना के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है।"

🔷 प्रमुख विशेषज्ञ वक्ता

  • डॉ. ए. के. पांडे, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी
  • श्री गोपीकृष्ण सोनी, जनजातीय पारिस्थितिकी पर शोधकर्ता
  • डॉ. बसंत कुमार मोहंता, वरिष्ठ मानवविज्ञानी
  • डॉ. रूपेंद्र कवि, उप निदेशक, जनजातीय अनुसंधान संस्थान, छत्तीसगढ़ सरकार — सत्र संयोजक एवं मुख्य वक्ता

डॉ. कवि ने क्षेत्रीय अनुभवों के आधार पर पारंपरिक चिकित्सकों की सामाजिक, धार्मिक एवं औषधीय भूमिका को रेखांकित किया और उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशनआयुष मंत्रालय के माध्यम से नीति में समावेशित करने की आवश्यकता बताई।

🔷 क्षेत्रीय अनुभव एवं सांस्कृतिक आधार

  • छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और बिहार से प्राप्त नृवंशविज्ञानीय अनुभवों में यह स्पष्ट हुआ कि—
  • ढोकरा शिल्प, गोतुल चित्र, बैगा टैटू एवं आदिवासी अनुष्ठान जनजातीय चिकित्सा से गहरे जुड़ाव रखते हैं।
  • झारखंड की असुर, कोरवा एवं मुंडा जनजातियाँ लोक गीतों एवं नृत्य के माध्यम से चिकित्सा एवं भावनात्मक उपचार की परंपरा जीवित रखती हैं।
  • इन परंपराओं में जल, वनों, वनौषधियों एवं देवी-देवताओं के साथ संतुलन की अवधारणाएँ अंतर्निहित हैं।

🔷 नीतिगत समन्वय और सरकारी संरेखण

इस संवाद में निम्न योजनाओं से सुसंगत विचार प्रस्तुत किए गए:

  • प्रधानमंत्री जन-जन (JANMAN) अभियान – स्वास्थ्य, आवास, आजीविका एवं संस्कृति पर केंद्रित।
  • आदि कर्मयोगी अभियान – 20 लाख जनजातीय युवाओं को नेतृत्व एवं सेवा से जोड़ने की योजना।
  • TRIFED एवं TRI – दस्तावेजीकरण, उत्पाद ब्रांडिंग एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में कार्यरत।

🔷 प्रमुख सिफारिशें

  1. राष्ट्रीय पारंपरिक चिकित्सा अभिलेखागार की स्थापना (UNESCO, TRI और आयुष मंत्रालय के सहयोग से)
  2. GI टैगिंग एवं ब्रांडिंग – बस्तर ढोकरा, बैगा टैटू जैसी कलाओं को बाज़ार से जोड़ना
  3. जनजातीय विरासत फैलोशिप – पारंपरिक चिकित्सकों एवं मौखिक इतिहासकारों को संस्थागत समर्थन
  4. पाठ्यक्रम समावेशन – स्कूली शिक्षा व सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में जनजातीय प्रतीकों को सम्मिलित करना

🔷 निष्कर्ष

सोसाइटी फॉर एम्पावरमेंट ने जनजातीय अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुनः दोहराते हुए सरकार एवं भागीदार संस्थाओं से ठोस कार्यवाही एवं समन्वय का आह्वान किया।

🎥 संवाद देखने के लिए: यहाँ क्लिक करें

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