ABVP स्थापना दिवस: राष्ट्र निर्माण में छात्रशक्ति की भूमिका 9 जुलाई 1949 — यह वह दिन था जब भारत की स्वतंत्रता के पश्चात एक नए वि...
9 जुलाई 1949 — यह वह दिन था जब भारत की स्वतंत्रता के पश्चात एक नए विचार, एक नई ऊर्जा और एक राष्ट्रनिष्ठ छात्र आंदोलन की नींव रखी गई। यही दिन है जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) की स्थापना मुंबई में हुई थी। इस संगठन ने दशकों से राष्ट्र निर्माण, शैक्षिक सुधार और छात्र जागरण में जो भूमिका निभाई है, वह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने योग्य है।
ABVP की स्थापना और उद्देश्य
ABVP की स्थापना का मूल उद्देश्य था — राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में युवाओं की सक्रिय भागीदारी। आरंभ में यह संगठन शिक्षण संस्थानों में वामपंथी विचारधारा के वर्चस्व का वैचारिक उत्तर देने के लिए बना, लेकिन समय के साथ यह एक सर्वांगीण छात्र संगठन बन गया, जिसकी पहुँच देश के सुदूर गाँवों तक है।
ABVP के मूल सिद्धांत
- राष्ट्र प्रथम — छात्र जीवन को राष्ट्रहित में प्रेरित करना
- शिक्षा में गुणवत्ता — शिक्षा नीति में सुधार और स्वदेशी मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत
- सामाजिक समरसता — जाति, वर्ग, भाषा व क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर एक भारत की भावना को पोषित करना
- सक्रिय छात्र नेतृत्व — छात्र जीवन में नेतृत्व कौशल का विकास
ABVP की प्रमुख उपलब्धियाँ
ABVP ने अनेक शैक्षणिक और सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया है, जिनमें कुछ उल्लेखनीय हैं:
- शिक्षा में सुधार हेतु शिक्षा में समग्र परिवर्तन अभियान
- ‘नो Naxal जोन’ आंदोलन, जो नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्रों में युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए चलाया गया
- दृष्टिकोण सम्मेलन जैसे राष्ट्रीय स्तर के विचार गोष्ठियों का आयोजन
- विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव के माध्यम से स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देना
आज के भारत में ABVP की प्रासंगिकता
आज जब भारत शिक्षा, रोजगार और सामाजिक समरसता के विविध आयामों से जूझ रहा है, ABVP का छात्र हितैषी, राष्ट्रनिष्ठ और संस्कार आधारित दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है। यह संगठन केवल चुनाव लड़ने वाला छात्रसंघ नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन है, जो युवा मन को जागरूक करता है, उसे आत्मनिर्भर बनाता है और “चरैवेति चरैवेति” की भावना से आगे बढ़ाता है।
आलोचना और उत्तर
हर प्रभावशाली संगठन की तरह ABVP को भी आलोचना का सामना करना पड़ता है — कभी इसकी वैचारिक प्रतिबद्धता को पक्षपात कहा जाता है, तो कभी इसके कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं के व्यवहार पर प्रश्नचिह्न लगते हैं। परंतु यह भी सत्य है कि ABVP आलोचना से डरता नहीं, बल्कि सीखता है। संगठन का लोकतांत्रिक ढाँचा और आत्ममंथन की परंपरा इसे समय के साथ सशक्त बनाती रही है।
छात्रशक्ति से राष्ट्रशक्ति
ABVP की 76 वर्षों की यात्रा केवल एक संगठन की नहीं, भारत के छात्र समुदाय की आत्म-जागृति की यात्रा है। यह संगठन आज भी नित नए प्रयोगों से, नई पीढ़ी के साथ संवाद बनाते हुए, भारत को विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था — “युवाओं में वह शक्ति है जो भारत को पुनः विश्वगुरु बना सकती है।” ABVP इस विश्वास की जीवंत प्रतिमूर्ति है।
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