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क्या यह प्रशासनिक अनुशासन है या संवेदनहीनता की पराकाष्ठा? अधिकारी अवकाश पर, गलती किसी और की — पर निलंबन उसी का!

✍ विशेष संवाददाता | 📅 7 जून 2025 "चूक जिसकी निगरानी में हुई, वही उत्तरदायी होना चाहिए" — यह सिद्धांत प्रशासनिक आचरण की आत्...



✍ विशेष संवाददाता | 📅 7 जून 2025


"चूक जिसकी निगरानी में हुई, वही उत्तरदायी होना चाहिए" — यह सिद्धांत प्रशासनिक आचरण की आत्मा है। पर छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में इस आत्मा को ताक पर रखकर एक राजपत्रित अधिकारी को बिना नोटिस, बिना कारण बताओ पत्र, और बिना जवाब का मौका दिए, सीधे व्हाट्सएप पर सस्पेंशन ऑर्डर थमा दिया गया।

विकासखंड शिक्षा अधिकारी (BEO) मानसिंह भारद्वाज, जो सृजनशीलता की मिसाल माने जाते हैं, विधिवत अवकाश पर मध्यप्रदेश स्थित अपने गृह नगर सिवनी गए थे। पारिवारिक विवाह समारोह में व्यस्त थे कि अचानक मामा के निधन की खबर आ गई। इस शोकाकुल समय में, जब वे लौट ही रहे थे, उन्हें मोबाइल पर मिला — वाट्सएप पर उनका निलंबन आदेश

शिक्षा विभाग द्वारा चलाए जा रहे युक्तियुक्तकरण (Rationalization) कार्यक्रम के तहत उनके कार्यालय से जो सूचनाएं भेजी गई थीं, उसमें कुछ तथ्यात्मक त्रुटियाँ बताई गईं — एक वरिष्ठ शिक्षक को कनिष्ठ दर्शाया गया, और एक स्कूल का ग्रेड ‘E’ की जगह ‘T’ लिखा गया। इन खामियों के आधार पर, कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ ने संभागायुक्त के अनुमोदन से सीधे निलंबन आदेश जारी कर दिया।

⚖️ क्या यह गलती थी? हो सकता है। पर क्या यह तरीका न्यायोचित है?

प्रशासनिक नियम स्पष्ट हैं: यदि कोई अधिकारी नियमानुसार अवकाश पर है, तो उस दौरान कार्यालयीन कार्यों में हुई किसी भी गलती की जिम्मेदारी उस प्रभारी अधिकारी की होती है जिसकी देखरेख में वह कार्य हुआ। न केवल यह सेवा नियमों का प्रश्न है, बल्कि प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) का भी। ऐसे में, यदि निगरानी किसी और की थी, तो दंड उसी को मिलना चाहिए — न कि उस अधिकारी को जो अवकाश पर शोकग्रस्त था।

यहां सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि किसी भी तरह का कारण बताओ नोटिस नहीं भेजा गया, न ही कोई प्रारंभिक जांच, न ही जवाब माँगा गया। सीधे स्मार्टफोन पर सस्पेंशन थमा दिया गया। यह घटना न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया की बर्बादी का संकेत देती है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न की पराकाष्ठा भी दर्शाती है।

🌿 मानसिंह भारद्वाज: वह अधिकारी जो कार्यालय को ‘उद्यान’ बना देता है

श्री भारद्वाज अपने क्षेत्र में रचनात्मकता और ईको-फ्रेंडली पहलों के लिए पहचाने जाते हैं। उनके नेतृत्व में जगदलपुर बीईओ कार्यालय को वृक्षों और हरे-भरे वातावरण से सजाया गया है। उनकी इस अनूठी पहल को केंद्र सरकार की संयुक्त सचिव ऋचा शर्मा और तत्कालीन कलेक्टर डॉ. अय्याज तंबोली ने सराहा और दो लाख रुपए के पुरस्कार से सम्मानित भी किया।

शिक्षकों के हित में कार्य करने वाले श्री भारद्वाज छत्तीसगढ़ राजपत्रित अधिकारी संघ के जिला अध्यक्ष भी हैं। ऐसे सेवा-निष्ठ अधिकारी के साथ किया गया यह व्यवहार पूरे अधिकारी समाज को आहत कर गया है।

📚 प्रामाणिक कानूनी संदर्भ:

1. All India Services (Discipline and Appeal) Rules, 1969

2. Central Civil Services (Classification, Control and Appeal) Rules, 1965

3. Indian Constitution – Article 311(2)

4. Doctrine of Natural Justice: Audi Alteram Partem – “सुनवाई का अधिकार सबको है”

📣 शिक्षक समाज और नागरिकों की मांग: न्याय हो — केवल दिखावा नहीं

इस घटना के बाद अधिकारी संघ, शिक्षक संगठन और नागरिक समाज में रोष है। सबका एक ही सवाल — जब एक अधिकारी विधिवत अवकाश पर है और गलती किसी और की निगरानी में हुई है, तो फिर सजा किसे मिलनी चाहिए? क्या प्रशासन संवेदना से इतना दूर हो गया है कि एक विधिवत अवकाश लेकर शोकग्रस्त अधिकारी को भी चैन से शोक मनाने का अधिकार नहीं?

"शासन-प्रशासन में यदि न्याय की नींव ही हिल जाए, तो व्यवस्था मात्र दंड का औजार बन जाती है।"


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