"जहां शिक्षक नहीं हैं, वहीं भेजे जा रहे हैं, सरकारी सेवा में पोस्टिंग जरूरत के हिसाब से होती है" – परदेशी रायपुर: शिक्षा विभाग में...
"जहां शिक्षक नहीं हैं, वहीं भेजे जा रहे हैं, सरकारी सेवा में पोस्टिंग जरूरत के हिसाब से होती है" – परदेशी
रायपुर: शिक्षा विभाग में इन दिनों 'युक्तियुक्तकरण' शब्द सुर्खियों में है। जैसे ही सत्र शुरू होने को है, विभाग ने पूरे प्रदेश में जरूरत से ज्यादा पदस्थ शिक्षकों को वहां भेजना शुरू किया है, जहां शिक्षक नहीं हैं या बहुत कम संख्या में हैं।
इस कदम को लेकर शिक्षक संगठनों ने विरोध दर्ज कराया है, लेकिन विभाग का पक्ष साफ है। इस मुद्दे पर शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव श्री परदेशी ने सीधी बातचीत में कहा,
> "सरकारी सेवा में नियुक्ति हमेशा जरूरत के आधार पर होती है। हमारा उद्देश्य केवल इतना है कि जहां पढ़ाने वाला कोई नहीं है, वहां शिक्षक भेजे जाएं। यह किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि छात्रों के हित में है।"
परदेशी ने बताया कि वर्तमान में प्रदेश में लगभग 11,000 शिक्षक ऐसे हैं, जो 'अतिशेष' की श्रेणी में आ जाते हैं – यानी उन स्कूलों में पदस्थ हैं, जहां शिक्षक पहले से पर्याप्त हैं या बच्चों की संख्या बहुत कम है।
शिक्षकों का विरोध क्यों?
शिक्षक संगठनों का कहना है कि बार-बार तबादलों से उनकी पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है। कुछ शिक्षक वर्षों से एक ही स्थान पर सेवाएं दे रहे हैं और अचानक तबादला आदेश आने से असंतोष व्याप्त हो गया है।
इस पर सचिव परदेशी ने दो टूक कहा:
> "जब छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात आती है, तो भावनाओं से ज्यादा प्राथमिकता बच्चों की जरूरत को दी जाती है। हमारी मंशा किसी को असुविधा पहुंचाने की नहीं, बल्कि संसाधनों का संतुलन स्थापित करने की है।"
क्या है युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया?
युक्तियुक्तकरण का अर्थ है – शिक्षकों का संतुलित वितरण, ताकि सभी स्कूलों में आवश्यकता के अनुसार शिक्षक उपलब्ध हों। इसमें छात्र-शिक्षक अनुपात, विषय विशेषज्ञता और भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखा जाता है।
निष्कर्ष:
सरकार का रुख स्पष्ट है – जहां जरूरत है, वहीं शिक्षक जाएंगे। वहीं शिक्षकों की भावनाओं और समस्याओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में यह प्रक्रिया संतुलन के साथ लागू होती है या फिर विवाद और गहराता है।
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