13 साल पुराने मामले में खुली प्रशासनिक खेल की परतें, जांच में नया मोड़ रायपुर: छात्रवृत्ति घोटाले के 13 साल पुराने मामले में अफसरों की चा...
13 साल पुराने मामले में खुली प्रशासनिक खेल की परतें, जांच में नया मोड़
रायपुर: छात्रवृत्ति घोटाले के 13 साल पुराने मामले में अफसरों की चालाकी और जवाबदेही टालने की कोशिशें अब सामने आने लगी हैं। मामला ऐसा है जहाँ कागजों पर तो 31 लाख रुपए के घोटाले का दोष एक निचले स्तर के बाबू पर मढ़ दिया गया, लेकिन जब जांच की परतें खुलीं, तो सच्चाई कुछ और ही निकली।
जिस प्रकरण में बाबू को बर्खास्त किया गया, उसमें न केवल उसकी भूमिका संदिग्ध रही, बल्कि यह भी सामने आया कि इस राशि को मंजूरी उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा दी गई थी। फिर भी कार्रवाई में सिर्फ निचले स्तर के कर्मचारी को कठघरे में खड़ा किया गया, जबकि मंजूरी देने वाले अफसरों को जांच के बाद क्लीन चिट मिल गई।
न कोई पैसा निकला, न कोई सीधा लाभ—फिर भी नौकरी गई:
हैरानी की बात यह है कि जिस फाइल पर बाबू ने केवल प्रक्रिया का पालन किया था, उसमें कोई आर्थिक लाभ उसने प्राप्त नहीं किया। राशि की स्वीकृति और वितरण की प्रक्रिया में निर्णय लेने वाले अफसर अब साफ बरी हो चुके हैं।
सूत्रों के मुताबिक, यह मामला अब राज्य प्रशासनिक सेवा के गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। कर्मचारी संगठनों ने भी इस निर्णय पर सवाल उठाए हैं और इसे न्याय की दृष्टि से अनुचित बताया है।
अब क्या होगा?
बाबू ने सेवा बहाली के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। जानकारों का मानना है कि यदि न्यायपालिका से बाबू को राहत मिलती है, तो यह मामला छात्रवृत्ति घोटालों में जिम्मेदारियों की पुनः समीक्षा की मिसाल बन सकता है।
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