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हरे पत्तों से हरियाली की ओर: कांकेर की महिलाएं बना रही जैविक खाद, कंपनियां कर रही खरीद, किसान हो रहे मुक्त रासायनिक खाद से

  हरे पत्तों से हरियाली की ओर: कांकेर की महिलाएं बना रही जैविक खाद, कंपनियां कर रही खरीद, किसान हो रहे मुक्त रासायनिक खाद से कांकेर, छत्तीसग...

 

हरे पत्तों से हरियाली की ओर: कांकेर की महिलाएं बना रही जैविक खाद, कंपनियां कर रही खरीद, किसान हो रहे मुक्त रासायनिक खाद से

कांकेर, छत्तीसगढ़ : छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के चारामा ब्लॉक के ग्राम कसावाही में एक नई हरित क्रांति quietly दस्तक दे रही है। यहां की महिलाएं न केवल प्रकृति से जुड़ाव को फिर से परिभाषित कर रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की भी चमकदार मिसाल बन रही हैं।

मां लक्ष्मी महिला स्व-सहायता समूह की सदस्याएं पिछले पांच वर्षों से गांव के घर-घर से इकट्ठे किए गए हरे पत्तों, गोबर और अन्य प्राकृतिक अवशेषों से शुद्ध जैविक खाद का निर्माण कर रही हैं। इनके अथक प्रयासों और समर्पण का ही परिणाम है कि आज यह जैविक खाद सिर्फ स्थानीय खेतों तक सीमित नहीं रही, बल्कि कई निजी कंपनियां भी इनके उत्पाद की खरीदी कर रही हैं।


प्राकृतिक साधनों से समृद्धि की ओर:

महिलाएं इस खाद को पूरी तरह पारंपरिक तरीकों से, बिना किसी रासायनिक मिश्रण के तैयार करती हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता। किसान अब रासायनिक खाद से मुक्त होकर इस जैविक खाद की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका उपयोग कर खेती की लागत कम हुई है और उपज की गुणवत्ता में भी सुधार आया है।


महिला सशक्तिकरण की मिसाल:

इस पहल ने न केवल गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त भी बनाया है। समूह की संयोजिका मीना बाई कहती हैं, "पहले हम सिर्फ घर के कामों तक सीमित थीं। अब हम खुद पैसे कमा रही हैं, बच्चों की पढ़ाई से लेकर घर की ज़रूरतों तक हर जगह हाथ बंटा रहे हैं।"


सरकार और संस्थाएं भी कर रहीं सहयोग:

स्थानीय प्रशासन और कृषि विभाग ने भी इस पहल को सराहा है और समय-समय पर प्रशिक्षण व उपकरणों की सहायता उपलब्ध कराई है। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास और भी बढ़ा है।


निष्कर्ष:

कसावाही गांव की ये महिलाएं हमें यह सिखाती हैं कि संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि सोच और संकल्प की जरूरत होती है। हरे पत्तों से हरियाली की ओर बढ़ता यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है, बल्कि ग्रामीण भारत में आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की एक नई तस्वीर भी उकेरता है।


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