"मौत का सौदा: चीरघर में मुफ़्त कफ़न भी बिकने लगा, गरीब परिजनों से वसूले जा रहे ₹500" रायपुर: सरकारी अस्पतालों में हादसा, हत्या य...
"मौत का सौदा: चीरघर में मुफ़्त कफ़न भी बिकने लगा, गरीब परिजनों से वसूले जा रहे ₹500"
रायपुर: सरकारी अस्पतालों में हादसा, हत्या या आत्महत्या के मामलों में शव का पोस्टमार्टम होने के बाद परिजनों को सरकार की ओर से मुफ़्त कफ़न उपलब्ध कराया जाता है, ताकि अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक हो सके। लेकिन अब यह संवेदनशील व्यवस्था भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ गई है।
शव वाहन चालक और चीरघर कर्मी बना रहे अवैध कमाई का जरिया:
जांच में सामने आया है कि शव वाहन ड्राइवर और पोस्टमार्टम हाउस के कर्मचारी, परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए कफ़न के बदले ₹500 तक की मांग कर रहे हैं। और यदि कोई गरीब परिजन यह रकम नहीं दे पाता, तो कर्मचारियों का सीधा जवाब होता है –
"पैसे नहीं हैं तो बिना कफ़न के बॉडी ले जाओ।"
वसूली का सालाना आंकड़ा पहुंचा 40 लाख तक:
सूत्रों के अनुसार, यह अवैध वसूली सालभर में करीब 40 लाख रुपए तक पहुंच जाती है। सरकारी संसाधनों से चलने वाली सेवाओं को निजी कमाई का जरिया बना लिया गया है। दुखद पहलू यह है कि यह सब उन लोगों से वसूला जा रहा है जो पहले ही अपनों की मौत से टूट चुके होते हैं।
व्यवस्था पर उठ रहे सवाल:
इस मामले ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता और लचर निगरानी प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर सरकार गरीबों के लिए अंतिम समय में भी सहारा बनने की कोशिश कर रही है, वहीं कुछ कर्मचारी इस मानवीय सहायता को भी कारोबार बना चुके हैं।
प्रशासन की चुप्पी आश्चर्यजनक:
अब तक प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट कार्रवाई या जांच की घोषणा नहीं हुई है। स्थानीय नागरिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की है।
निष्कर्ष:
मृतकों का सम्मान और उनके परिजनों की पीड़ा को समझना हर समाज और तंत्र की नैतिक जिम्मेदारी है। यदि चीरघर जैसी जगह पर भी मानवता का गला घोंटा जाएगा, तो समाज का भरोसा किस पर रहेगा?
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