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40 साल पुरानी बस्ती उजड़ने की कगार पर:

दो बंगले पहले से ही मिल चुके, अब तीसरे के लिए उजाड़ा जा रहा है नकटी गांव: नवा रायपुर :  राजधानी नवा रायपुर के अंतिम छोर पर बसा नकटी गांव आज ...


दो बंगले पहले से ही मिल चुके, अब तीसरे के लिए उजाड़ा जा रहा है नकटी गांव:

नवा रायपुर : राजधानी नवा रायपुर के अंतिम छोर पर बसा नकटी गांव आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। चार दशकों से अधिक समय से बसे इस गांव के लगभग 85 परिवारों को प्रशासन ने अपना घर खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया है। कारण? यहां विधायकों और सांसदों के लिए नए आलीशान बंगले बनाए जाने हैं — जबकि पहले ही माननीयों को दो-दो बंगले उपलब्ध हैं।

प्रशासन ने गांव को "अवैध अतिक्रमण" करार दिया है, लेकिन गांव वालों की कहानी कुछ और ही है। बुजुर्गों की आंखों में आंसू हैं, बच्चों के चेहरों पर डर है, और पूरे गांव में एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई है। यह खामोशी सिर्फ ईंट-पत्थर के घरों के उजड़ने की नहीं, बल्कि यादों, इतिहास और जीवन के उजड़ने की भी है।


“हमने यहां जिंदगी बसाई है, अब कहां जाएं?”

गांव के निवासी रामदास बघेल कहते हैं, “यहां हमने अपने बच्चों को बड़ा किया, खेत जोते, त्योहार मनाए। अब अचानक कहा जा रहा है कि हम अतिक्रमणकारी हैं। क्या हमारी जिंदगी की कोई कीमत नहीं?”


विकास बनाम विस्थापन:

सरकार का तर्क है कि यह क्षेत्र मास्टर प्लान के तहत आता है और यहाँ आधुनिक सुविधाओं से युक्त विधायकों के नए आवास बनेंगे। मगर सवाल ये है कि क्या विकास का अर्थ अब आम आदमी के आशियाने उजाड़ना रह गया है?


माननीयों के लिए बंगलों की बहार, जनता के लिए बेघर होने की मार:

जहां एक ओर माननीयों को पहले से ही दो सरकारी आवास उपलब्ध हैं, वहीं तीसरे बंगले की तैयारी में एक बस्ती को मटियामेट किया जा रहा है। यह सोचने की बात है कि सत्ता के गलियारों में आम जनता की पीड़ा कहीं खो तो नहीं गई?


क्या बस्ती उजड़ेगी, या इंसाफ होगा?

सरकार के फैसले पर लोगों की नजर है। यह सिर्फ नकटी गांव की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश में चल रहे एक बड़े सवाल की गूंज है — विकास किसके लिए, और किस कीमत पर?


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