" पद नहीं, पहचान चाहिए!" — युक्तियुक्तकरण के विरोध में गूंजा शिक्षकों का स्वर, मंत्रालय घेराव की कोशिश नाकाम रायपुर : छत्तीसगढ़...
"पद नहीं, पहचान चाहिए!" — युक्तियुक्तकरण के विरोध में गूंजा शिक्षकों का स्वर, मंत्रालय घेराव की कोशिश नाकाम
रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सोमवार को शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा एक ऐतिहासिक दिन दर्ज हुआ, जब प्रदेशभर से जुटे हजारों शिक्षकों ने युक्तियुक्तकरण के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मंत्रालय की ओर कूच किया। “पद नहीं, पहचान चाहिए”, “शिक्षक अपमान नहीं सहेगा” जैसे नारों से आसमान गूंज उठा। सरकार द्वारा युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत शिक्षकों के पद समाप्त करने की आशंका के चलते आंदोलन की ज्वाला भड़क उठी है।
"युक्तियुक्तकरण नहीं, यह पद समाप्त करने की साजिश है"
प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने आरोप लगाया कि युक्तियुक्तकरण के नाम पर सरकार एक सोची-समझी रणनीति के तहत उनके पदों को खत्म करना चाहती है। आंदोलनकारियों का कहना है कि यह कदम न सिर्फ हजारों शिक्षकों की आजीविका को खतरे में डालेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर असर डालेगा।
एक शिक्षक ने भावुक होकर कहा:
> "हमने जीवन भर बच्चों को भविष्य सिखाया, आज हमारा भविष्य ही सरकार मिटाने पर तुली है।"
भर्ती की जगह पदों का 'विलय'?
आंदोलनकारियों ने केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की भाजपा सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनावों के समय 53,000 शिक्षकों की भर्ती का वादा किया गया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद न केवल भर्ती रुकी, बल्कि मौजूदा पद भी समाप्त किए जा रहे हैं।
"भर्ती की बात की थी, अब विदाई की तैयारी कर रहे हैं," एक प्रदर्शनकारी शिक्षक ने व्यंग्य में कहा।
मंत्रालय की ओर बढ़े कदम, पुलिस ने रोका:
संकल्प सभा के बाद जब शिक्षक मंत्रालय की ओर बढ़ने लगे, तो उन्हें पुलिस बल ने रास्ते में ही रोक दिया। वाटर कैनन, बैरिकेड्स और टीन के ऊंचे शेड्स जैसे इंतज़ामात पहले से तैयार थे। शिक्षक जैसे ही पहले बैरिकेड्स तक पहुंचे, उन्होंने उसे तोड़ दिया, लेकिन दूसरे बैरिकेड्स पर पुलिस ने उन्हें रोक दिया। इसके बाद सभी प्रदर्शनकारी वहीं धरने पर बैठ गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।
आंदोलन रहेगा जारी: शिक्षक संघ:
शिक्षक संगठनों ने साफ कर दिया है कि यह आंदोलन अब सिर्फ एक दिन का नहीं है। जब तक सरकार युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पर पुनर्विचार नहीं करती और स्थायी समाधान नहीं देती, तब तक यह विरोध चलता रहेगा।
"हम पढ़ाते हैं, चुप रहना नहीं सिखाते", यह नारा आज हर शिक्षक की आंखों में संघर्ष की आग बनकर चमक रहा था।
निष्कर्ष:
यह विरोध सिर्फ एक नीति का विरोध नहीं है, यह शिक्षा की गरिमा, शिक्षक की पहचान और भविष्य की पीढ़ियों के अधिकार की लड़ाई है। सरकार को अब सिर्फ निर्णय नहीं, संवाद करना होगा।
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