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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से हृदयविदारक तस्वीर — 17 पोटाकेबिनों में 6 हजार बच्चों के लिए न चपरासी, न विषयवार शिक्षक

  छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से हृदयविदारक तस्वीर — 17 पोटाकेबिनों में 6 हजार बच्चों के लिए न चपरासी, न विषयवार शिक्षक: दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) : ...

 

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से हृदयविदारक तस्वीर — 17 पोटाकेबिनों में 6 हजार बच्चों के लिए न चपरासी, न विषयवार शिक्षक:

दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) : एक ओर जहां शिक्षा को हर बच्चे का मौलिक अधिकार बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले से आई यह तस्वीर सिस्टम की उदासीनता को आईना दिखा रही है। जिले में संचालित 17 पोटाकेबिन स्कूलों में पढ़ रहे लगभग 6,000 बच्चों की हालत बेहद चिंताजनक है। इन बच्चों के पास न चपरासी हैं, न ही विषयवार शिक्षक।

ये पोटाकेबिन स्कूल आदिवासी और दूरदराज के इलाकों में रह रहे बच्चों को शिक्षा के मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बनाए गए थे। पर आज ये ही स्कूल अनदेखी और अव्यवस्था की मिसाल बनते जा रहे हैं।


शिक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में:

छात्रों की संख्या: लगभग 6,000

संस्थानों की संख्या: 17

स्थायी शिक्षक: बहुत सीमित

विषयवार शिक्षक: लगभग ना के बराबर

चपरासी या सहायक कर्मचारी: नहीं

कक्षा 6 से 12 तक के इन बच्चों को अक्सर एक ही शिक्षक गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे अलग-अलग विषय पढ़ाने के लिए मजबूर होता है। शिक्षकों का कहना है कि वे चाहकर भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं, क्योंकि न तो स्टाफ पूरा है, न ही आवश्यक संसाधन।


छात्रों के सपनों पर सिस्टम की बेरुखी भारी:

कई छात्रों का कहना है कि उन्हें आगे की पढ़ाई की उम्मीदें कम होती जा रही हैं। वे पढ़ना चाहते हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी बनना चाहते हैं, लेकिन बिना उचित शिक्षक और बुनियादी सुविधाओं के यह सपना अधूरा रह सकता है।


प्रशासन मौन, समाधान अनदेखा:

स्थानीय प्रशासन से बार-बार अनुरोधों के बावजूद स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। शिक्षा विभाग ने अस्थायी नियुक्तियों और गेस्ट टीचर्स की बात की है, लेकिन हकीकत में हालात जस के तस बने हुए हैं।


समाधान की राह:

पोटाकेबिन स्कूलों के लिए विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति तत्काल हो।

सहायक कर्मचारियों (चपरासी, रसोइया आदि) की बहाली हो।

इन स्कूलों की निगरानी के लिए स्थानीय समिति का गठन किया जाए।

सरकार को चाहिए कि इन बच्चों के सपनों की कीमत समझे, और उन्हें शिक्षा के लिए आवश्यक मानव संसाधन और मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराए।

"बच्चों के भविष्य के साथ किया जा रहा यह खिलवाड़ केवल एक जिले की समस्या नहीं, बल्कि समूची व्यवस्था की चेतावनी है।"



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