डायल-112 की सांसें फूलीं: तकनीकी अनुभवहीन कंपनी के भरोसे इमरजेंसी सेवा, 400 बोलेरो बनी शो-पीस: रायपुर : छत्तीसगढ़ की आपातकालीन सेवा डायल-11...
डायल-112 की सांसें फूलीं: तकनीकी अनुभवहीन कंपनी के भरोसे इमरजेंसी सेवा, 400 बोलेरो बनी शो-पीस:
रायपुर : छत्तीसगढ़ की आपातकालीन सेवा डायल-112 पर संकट के बादल और गहरे हो गए हैं। बीते 7 वर्षों से राज्य में चल रही यह इमरजेंसी सेवा अब दिन-ब-दिन बदहाल होती जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि जिस एबीपी कंपनी को वर्तमान में इस सेवा का जिम्मा सौंपा गया है, उसका काम केवल ट्रांसपोर्टिंग तक सीमित था। फिर भी, बिना किसी टेक्निकल अनुभव के, राज्य की इस संवेदनशील सेवा को उसके हवाले कर दिया गया।
400 बोलेरो वाहन—जो पहले इमरजेंसी कॉल्स पर दौड़ते थे—अब मैदानों में धूल खा रहे हैं। घटनास्थलों पर पुलिस या मेडिकल टीम समय पर नहीं पहुंच पा रही है, जिससे जनता की सुरक्षा व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है।
डायल-112 की मूल व्यवस्था में तकनीकी दक्षता, रीयल-टाइम लोकेशन ट्रैकिंग, तत्काल निर्णय प्रणाली, और प्रशिक्षित रिस्पॉन्स टीमें शामिल होती थीं। मगर अब, संचालनकारी कंपनी के पास इन सबसे जुड़ा कोई अनुभव नहीं है। इसका नतीजा है कि वारदातों के समय, यह सेवा न सिर्फ देर से पहुंचती है, बल्कि कई बार पहुंच ही नहीं पाती।
नया टेंडर नहीं, संकट गहराया:
पुराने ठेके की अवधि समाप्त हो चुकी है, लेकिन नया टेंडर अब तक जारी नहीं हुआ। ऐसे में अस्थायी रूप से सेवा को एबीपी कंपनी के हवाले कर दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय बिना व्यापक जांच और अनुभव मूल्यांकन के लिया गया, जो प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है।
जनता में रोष, प्रशासन मौन:
जहां एक ओर नागरिकों को आपातकालीन मदद समय पर नहीं मिल पा रही है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन इस विषय पर खामोश है। न सुरक्षा की गारंटी, न जवाबदेही, डायल-112 अब अपने उद्देश्य से भटकती दिख रही है।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ की सुरक्षा व्यवस्था के इस अहम स्तंभ पर उठते सवालों का जवाब जरूरी है। डायल-112 जैसे संवेदनशील प्रोजेक्ट को तकनीकी रूप से दक्ष, अनुभवशील, और जवाबदेह हाथों में सौंपना अब राज्य के लिए अनिवार्य हो चुका है।
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