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पहलगाम का ज़ख्म: गोलियों की गूंज, आंखों में आंसू और दिल में ग़ुस्सा

  पहलगाम का ज़ख्म: गोलियों की गूंज, आंखों में आंसू और दिल में ग़ुस्सा: रायपुर: जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम से महज 6 किलोमीटर दूर बैसरन घ...

 पहलगाम का ज़ख्म: गोलियों की गूंज, आंखों में आंसू और दिल में ग़ुस्सा:

रायपुर: जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम से महज 6 किलोमीटर दूर बैसरन घाटी में हुआ आतंकी हमला एक परिवार की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल गया। 15 साल की लक्षित मिरानिया के लिए यह सिर्फ़ एक हादसा नहीं, बल्कि एक ऐसा सदमा है जिसे वह उम्रभर नहीं भुला सकेगी।

"अब भी गोलियों की आवाज़ कानों में गूंज रही है... पापा की चीखें अभी भी सुनाई देती हैं," इतना कहते ही लक्षित की आवाज़ कांपने लगती है। उसकी आंखों के सामने अब भी वही मंज़र घूमता रहता है—अफरातफरी, चीखें, खून और खामोश होते अपने।

हमले में लक्षित ने अपने पिता को खो दिया। उसके भाई की आंखों के सामने यह सब हुआ। वह बार-बार बताने की कोशिश करता है कि क्या देखा, लेकिन हर बार रो पड़ता है। बड़ा भाई तो सदमे में है ही, परिवार पहले ही एक बेटे को खो चुका है, अब दूसरा भी नहीं रहा। मां की हालत ऐसी है कि होश में आते ही बेसुध हो जाती हैं।

गांव में मातम पसरा है। ग़ुस्सा भी है—आतंक के खिलाफ, और इस दर्दनाक हकीकत के खिलाफ कि यहां आम लोग भी महफूज़ नहीं। एक ओर पहलगाम की वादियों में सुकून ढूंढते पर्यटक आते हैं, दूसरी ओर इसी धरती पर कुछ परिवारों के लिए अब सिर्फ़ दर्द बाकी रह गया है।

यह सिर्फ़ एक हमला नहीं था—यह एक परिवार की पूरी दुनिया उजाड़ देने वाला दिन था।


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