बस्तर का ‘लौह किला’: 57 साल से जारी है खनन, अभी 80 साल का भंडार बाकी: बैलाडीला, बस्तर : छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित बैलाडीला पहाड...
बस्तर का ‘लौह किला’: 57 साल से जारी है खनन, अभी 80 साल का भंडार बाकी:
बैलाडीला, बस्तर : छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित बैलाडीला पहाड़ियां न सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध हैं, बल्कि यह दुनिया के बेहतरीन लौह अयस्क (हेमेटाइट आयरन ओर) का भंडार भी हैं। यहां 1968 से नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NMDC) द्वारा खनन किया जा रहा है, और खास बात यह है कि अभी भी यहां अगले 80 वर्षों तक खनन जारी रह सकता है।
दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लौह अयस्क का भंडार:
बैलाडीला की खदानें उच्च गुणवत्ता वाले हेमेटाइट आयरन ओर के लिए जानी जाती हैं, जिसकी मांग भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बनी रहती है। यह अयस्क इस्पात उद्योग के लिए बेहद जरूरी है और भारत की कई बड़ी इस्पात कंपनियां यहीं से कच्चा माल प्राप्त करती हैं।
खनन का सफर: 57 साल और आगे भी जारी रहेगा:
एनएमडीसी ने बैलाडीला में 1968 में खनन शुरू किया था। बीते 57 वर्षों में यहां से लाखों टन लौह अयस्क निकाला जा चुका है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, अभी भी यहां 80 साल तक का भंडार शेष है।
आर्थिक और औद्योगिक महत्व:
भारत की इस्पात उत्पादन क्षमता में योगदान: बैलाडीला की खदानों से निकला लौह अयस्क देश की कई प्रमुख स्टील कंपनियों को आपूर्ति किया जाता है।
निर्यात का प्रमुख केंद्र: यहां से निकला अयस्क जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों को भी निर्यात किया जाता है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
स्थानीय रोजगार: खनन कार्यों से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है, जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।
पर्यावरण और सामाजिक चुनौतियां:
हालांकि, इतने लंबे समय से जारी खनन के कारण पर्यावरण पर प्रभाव पड़ा है। जंगलों की कटाई, आदिवासी समुदायों का विस्थापन और पारिस्थितिकी पर असर जैसे मुद्दे भी सामने आए हैं। पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए सरकार और कंपनियों को सतत विकास की दिशा में प्रयास करने होंगे।
निष्कर्ष:
बस्तर की बैलाडीला पहाड़ियां भारत के औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यहां खनन का सिलसिला दशकों से जारी है और यह आने वाले कई दशकों तक जारी रहेगा। लेकिन, इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों के हितों को ध्यान में रखकर खनन को संतुलित तरीके से संचालित करने की जरूरत है।
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