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कलिंगा विश्वविद्यालय के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान संकाय द्वारा विश्व दृष्टि दिवस आयोजित

  रायपुर । कलिंगा विश्वविद्यालय, मध्य भारत में एक प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित है। विश्वविद्य...

 


रायपुर । कलिंगा विश्वविद्यालय, मध्य भारत में एक प्रसिद्ध शैक्षिक संस्थान है जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान पर केंद्रित है। विश्वविद्यालय छात्रों के समग्र विकास में विश्वास करता है और इस प्रकार छात्रों को व्यावहारिक कौशल, तकनीक या विचारों को बढ़ाने और विकसित करने की सुविधा प्रदान करता है जिसका वे अपने काम या अपने दैनिक जीवन में उपयोग कर सकते हैं। विश्व दृष्टि दिवस के अवसर पर कलिंगा विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के जैवप्रौद्योगिकी विभाग के द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में "नेत्र एवं अंगदान" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उपरांत नेत्र प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थियों का निःशुल्क नेत्र परीक्षण भी किया गया। 


उक्त संगोष्ठी का शुभारंभ कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर. श्रीधर, महानिदेशक डॉ. बैजू जॉन, कुलसचिव डॉ. संदीप गांधी, छात्रकल्याण प्रकोष्ठ की अधिष्ठाता डॉ. आशा अंमईकर, विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. कोला, जैवप्रौद्योगिकी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुषमा दुबे एवं मुख्य वक्ता रायपुर के प्रतिष्ठित वरुण नेत्रालय के निर्देशक डॉ. मनीष श्रीवास्तव की उपस्थिति में माँ सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन, एवं वंदना से प्रारंभ हुआ। 

संवाद संगोष्ठी कार्यक्रम में कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर.श्रीधर ने कहा कि यह दुनिया कितनी सुन्दर है। हमारी आँखें ही उसे दिखाती हैं। सही मायनों में कहा जाए तो आँखें ही जीवन हैं। दान का महत्त्व हमारी संस्कृति में बहुत अधिक | अपनी क्षमता के अनुरूप किसी भी सुपात्र को दान देना बहुत महान कार्य है। नेत्र दान महादान में सम्मिलित है। आप अपनी मृत्यु के बाद नेत्र दान करके किसी जरूरतमंद को दृष्टि दे सकते हैं। जिससे वह इस सुंदर दुनिया को देख सके। उक्त कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रुप में उपस्थित रायपुर के प्रतिष्ठित वरुण नेत्रालय के निर्देशक डॉ. मनीष श्रीवास्तव ने कहा कि व्यक्ति अपने लिए तो जीता है लेकिन दूसरों के लिए जीना सीखे। आज देश की एक बड़ी आबादी अंधत्व का शिकार है। यदि हम अपने जिंदा रहते ही नेत्र दान का संकल्प पत्र भर दें एवं अपने परिजनों एवं समाज के अन्य लोगों को भी नेत्र दान के लिए प्रेरित करें तो अंधत्व की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। 

उक्त संगोष्ठी के उपरांत निःशुल्क नेत्र प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय परिवार के सैकड़ों सदस्य और विद्यार्थियों ने मृत्यु उपरांत नेत्र दान एवं अंगदान के लिए घोषणा पत्र भरकर अपनी जागरूकता का परिचय दिया। कार्यक्रम के उपरांत जैवप्रौद्योगिकी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुषमा दुबे ने मुख्य वक्ता एवं अन्य अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उक्त आयोजन में विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. विजय आनंद, डॉ. अंजु मेश्राम, डॉ. रामस्वरूप सैनी, श्री दिलेन्द्र चंद्राकर, सुश्री निराली बुद्धभट्टी के साथ अन्य प्राध्यापक कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।


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