मानव एकजुटता : छत्तीसगढ़ की सामाजिक संरचना और मानवीय चेतना — डॉ. रूपेन्द्र कवि मानवविज्ञानी, स...
छत्तीसगढ़ की सामाजिक पहचान उसकी जनजातीय विरासत, लोकपरंपराओं और सामुदायिक जीवन मूल्यों से निर्मित हुई है। मानवविज्ञान की दृष्टि से देखें तो यहाँ एकजुटता किसी औपचारिक अवधारणा का परिणाम नहीं, बल्कि पीढ़ियों से विकसित जीवन-पद्धति रही है। ग्रामीण और जनजातीय समाजों में व्यक्ति को समुदाय से अलग इकाई के रूप में नहीं, बल्कि सामूहिक संरचना के अभिन्न अंग के रूप में देखा गया है। यही विशेषता छत्तीसगढ़ को सामाजिक समरसता का सशक्त उदाहरण बनाती है।
अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस हमें इस मूल सामाजिक चेतना को समकालीन संदर्भों में समझने का अवसर देता है। मानवविज्ञान यह स्पष्ट करता है कि जिन समाजों में संसाधनों का साझा उपयोग, सामूहिक श्रम और परस्पर उत्तरदायित्व की परंपरा रही है, वहाँ सामाजिक संतुलन अधिक स्थिर रहा है। छत्तीसगढ़ के लोकजीवन में सहयोग आधारित कृषि, सामुदायिक निर्णय और साझा सांस्कृतिक उत्सव इस तथ्य को आज भी प्रतिबिंबित करते हैं।
तुलनात्मक मानवविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में यह उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी समाजों में प्रचलित Ubuntu की अवधारणा—जिसका भावार्थ है “मैं हूँ, क्योंकि हम हैं”—छत्तीसगढ़ की सामाजिक सोच से गहरा साम्य रखती है। दोनों ही समाजों में व्यक्ति की पहचान उसके सामाजिक संबंधों, सहभागिता और नैतिक उत्तरदायित्व से निर्धारित होती है। यह समानता इस बात को रेखांकित करती है कि मानव एकजुटता किसी एक भूगोल या संस्कृति की देन नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक मानवीय मूल्य है।
मानव एकजुटता का अर्थ केवल भावनात्मक एकता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समान अवसर और समावेशी विकास के प्रति ठोस प्रतिबद्धता है। विकास तभी सार्थक माना जा सकता है, जब वह समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे और किसी भी वर्ग को हाशिये पर न छोड़े।
छत्तीसगढ़ की लोकतांत्रिक परंपराएँ और लोकसंस्कृति हमें यह सिखाती हैं कि संवाद, सहभागिता और सहयोग से ही सामाजिक स्थायित्व संभव है। आज आवश्यकता है कि हम इन मूल्यों को केवल वैचारिक स्तर पर न रखें, बल्कि उन्हें अपने सामाजिक आचरण का हिस्सा बनाएं। एकजुटता तभी सार्थक होती है, जब वह व्यवहार में उतरती है।
अंतर्राष्ट्रीय मानव एकजुटता दिवस के अवसर पर यह संकल्प आवश्यक है कि हम छत्तीसगढ़ की इस सामूहिक चेतना—सह-अस्तित्व, सहयोग और सामाजिक उत्तरदायित्व—को संरक्षित करते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण में सहभागी बनें, जहाँ विविधता विभाजन का नहीं, बल्कि सामर्थ्य का स्रोत बने। यही मानव एकजुटता की वास्तविक और स्थायी सार्थकता है।
यह लेख लेखक के व्यक्तिगत विचारों पर आधारित है। इसका किसी भी शासकीय/संवैधानिक पद, कार्यालय अथवा आधिकारिक दृष्टिकोण से कोई संबंध नहीं है।


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