बस्तर के हस्तशिल्प को मिलेगा नया आयाम: कलेक्टर ने शिल्पकारों से की सीधी चर्चा ढोकरा, सीसल, लकड़ी, तुंबा, पैरा, पत्थर और कौड़ी ...
ढोकरा, सीसल, लकड़ी, तुंबा, पैरा, पत्थर और कौड़ी कला से जुड़े शिल्पकारों के साथ बस्तर कलेक्टर ने सीधी बातचीत कर गुणवत्ता, विपणन और प्रशिक्षण के उपायों पर चर्चा की।
जगदलपुर, 17 जुलाई 2025/ बस्तर जिले की बहुरंगी सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक कला को नई उड़ान देने के उद्देश्य से कलेक्टर श्री हरिस एस. और जिला पंचायत सीईओ श्री प्रतीक जैन की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। आस्था सभाकक्ष में आयोजित इस बैठक में ढोकरा, सीसल, लकड़ी मूर्तिकला, तुंबा, पैरा आर्ट, बांस, पत्थर और कौड़ी कला से जुड़े मास्टर ट्रेनरों, हस्तशिल्प बोर्ड प्रबंधकों तथा गैर-सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस संवाद में मुख्य रूप से इस बात पर बल दिया गया कि बस्तर के पारंपरिक हस्तशिल्प उत्पादों को बाजार की मांग के अनुरूप कैसे तैयार किया जाए, ताकि उनकी गुणवत्ता और मांग दोनों में वृद्धि हो। इसके लिए कलागुड़ी केंद्र के माध्यम से नियमित एवं उन्नत प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
कलेक्टर श्री हरिस एस. ने स्पष्ट किया कि "सिर्फ परंपरा ही नहीं, नवाचार भी जरूरी है।" हस्तशिल्प उत्पादों को आधुनिक मशीनों की सहायता से तैयार करने हेतु आवश्यक संसाधन और उपकरण मुहैया कराए जाएंगे ताकि उत्पादों की स्थायित्व और गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।
बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि शिल्पियों के बनाए उत्पादों के विक्रय हेतु एक स्थायी और सुव्यवस्थित विक्रय स्थल की स्थापना की जाएगी। वहीं, प्रशिक्षण के उपरांत प्रशिक्षणार्थियों के कार्य की निरंतर मॉनिटरिंग कराई जाएगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रशिक्षण का असर ज़मीनी स्तर पर भी दिखाई दे।
सीईओ श्री प्रतीक जैन ने कहा, “हस्तशिल्पियों की कला सिर्फ शोभा की वस्तु नहीं, बल्कि रोजगार और आत्मनिर्भरता का ज़रिया बन सकती है — अगर उन्हें सही मार्गदर्शन, तकनीक और बाज़ार मिले।”
बैठक में उपस्थित शिल्पियों ने भी अपनी समस्याओं और सुझावों को साझा किया, जिसमें कच्चे माल की कमी, विपणन के अवसर, तकनीकी प्रशिक्षण, और सहयोग की आवश्यकता प्रमुख रही। प्रशासन ने आश्वस्त किया कि इन सभी बिंदुओं पर ठोस कार्रवाई की जाएगी।
बस्तर के हस्तशिल्प अब केवल परंपरा का हिस्सा नहीं रहेंगे, बल्कि वे आधुनिक बाज़ार में एक विशिष्ट स्थान बनाएंगे — यह संदेश इस बैठक से स्पष्ट है। जिला प्रशासन के इस समन्वयात्मक प्रयास से न केवल शिल्पियों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, बल्कि बस्तर की कला विश्वपटल पर चमक उठेगी।
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