धान नहीं, अब शेड और मकान की 'खेती': मुआवज़े की उम्मीद में रोड़ापाली में उगे 100 से ज़्यादा अस्थायी घर: रायगढ़, छत्तीसगढ़ : धान के...
धान नहीं, अब शेड और मकान की 'खेती': मुआवज़े की उम्मीद में रोड़ापाली में उगे 100 से ज़्यादा अस्थायी घर:
रायगढ़, छत्तीसगढ़ : धान के हरे-भरे खेत अब टीन की छतों और अधूरे मकानों से ढक गए हैं। रायगढ़ जिले के रोड़ापाली गांव में जमीन पर अब फसल नहीं, बल्कि मुआवज़े की उम्मीद में शेड और बिना खिड़की-दरवाज़ों वाले घर 'उग' आए हैं।
हमारी टीम जब गांव पहुंची तो दृश्य चौंकाने वाला था – खेतों में एक के बाद एक 4 फीट ऊंचे टिन के शेड, अधबने मकान और ईंटों की अस्थायी दीवारें दिखीं। पता चला कि ये सभी निर्माण हाल ही के दिनों में शुरू हुए हैं, जब से यह खबर फैली कि महाराष्ट्र पॉवर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड-2 (महाजेनको) द्वारा यहां कोयला खदान शुरू की जाएगी, और ज़मीन अधिग्रहण के बदले मुआवज़ा दिया जाएगा।
स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव की लगभग 80% ज़मीन पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी है, लेकिन मुआवज़े की प्रक्रिया में मकानों को प्राथमिकता दिए जाने की अफवाह के बाद कई ग्रामीणों ने धान की खेती छोड़कर 'मकान की खेती' शुरू कर दी। खेतों पर तेजी से बनाए गए इन अस्थायी ढांचों की संख्या 100 से ऊपर पहुंच चुकी है।
मुआवज़ा नीति पर उठते सवाल:
अधिकारियों के अनुसार, मुआवज़ा नीति में स्पष्ट है कि मकानों के लिए अलग से मुआवज़ा निर्धारित किया गया है। यही कारण है कि लोगों ने जल्दबाज़ी में ईंट और टिन से घरनुमा ढांचे खड़े कर दिए। हालांकि प्रशासन अब इस पूरे मामले की जांच की बात कह रहा है।
जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया, "हम इस तरह के निर्माणों की समयसीमा की जांच करेंगे। अगर यह पाया गया कि ये मुआवज़ा पाने के इरादे से हाल में बनाए गए हैं, तो उचित कार्रवाई की जाएगी।"
गांव की तस्वीर बदल गई:
जहां पहले रोड़ापाली के खेतों में लहराते धान दिखते थे, अब वहां टिन की छतें और कच्ची दीवारें खड़ी हैं। गांव की पूरी तस्वीर ही बदल गई है।
इस घटना ने न केवल ग्रामीणों की मानसिकता को उजागर किया है, बल्कि प्रशासन और कंपनियों की मुआवज़ा नीति पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कहीं न कहीं यह कहानी उस गहराई से जुड़ी है, जहां विकास की रफ्तार आम लोगों के जीवन की जड़ें उखाड़ रही है।
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