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जब इतिहास ने पाल बांधे: आईएनएसवी कौंडिन्य का जलावतरण

समुद्री धरोहर का पुनर्जागरण: ‘आईएनएसवी कौंडिन्य’ के रूप में प्राचीन सिले जहाज का भारतीय नौसेना में गौरवपूर्ण प्रवेश — 4thColumn.in संपा...

समुद्री धरोहर का पुनर्जागरण: ‘आईएनएसवी कौंडिन्य’ के रूप में प्राचीन सिले जहाज का भारतीय नौसेना में गौरवपूर्ण प्रवेश

— 4thColumn.in संपादकीय डेस्क से



करवार के निर्जन सागर किनारे, 21 मई 2025 की सांझ एक ऐतिहासिक साक्षी बनी, जब भारत की ऐतिहासिक समुद्री शक्ति ने एक बार फिर लहरों पर विजय घोष किया। एक भव्य और औपचारिक समारोह में, भारतीय नौसेना ने उस पारंपरिक नौका को अपने बेड़े में ससम्मान सम्मिलित किया, जिसे प्राचीन भारतीय जहाज निर्माण कला की जीवित परंपरा के रूप में पुनः साकार किया गया है। यह जहाज अब ‘आईएनएसवी कौंडिन्य’ के नाम से भारत के जलयानों की श्रृंखला में अद्वितीय स्थान प्राप्त कर चुका है।

मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उस ऐतिहासिक क्षण की अध्यक्षता की, जो केवल एक नौसैनिक परिघटना नहीं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक-सांवैधानिक चेतना के पुनरुत्थान का घोष था। यह परियोजना, जो जुलाई 2023 में संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और मेसर्स होदी इनोवेशन के त्रिपक्षीय संकल्प से प्रारंभ हुई, उस भारतवर्ष की याद दिलाती है जिसकी नौकाएं कभी सात समुद्रों पर व्यापार, विद्या और वसुधैव कुटुंबकम् का सन्देश लेकर चली थीं।



आईएनएसवी कौंडिन्य की संकल्पना अजंता की गुफाओं में अंकित पाँचवीं शताब्दी के समुद्री दृश्यों से ली गई — चित्र जो आज भी पत्थर में जीवंत प्रतीत होते हैं। केरल के कुशल शिल्पियों, विशेषतः मास्टर शिपराइट श्री बाबू शंकरन के नेतृत्व में, इस अद्वितीय सिले हुए जहाज का निर्माण पारंपरिक विधि से हुआ। नारियल की रस्सियों, प्राकृतिक रेज़िन, और लकड़ी की पट्टियों से सिलकर तैयार की गई इसकी पतवार न केवल तकनीकी चमत्कार है, वरन् भारतीय परंपरा की अमिट छाप भी है।

जहाज का स्वरूप जितना आकर्षक है, उतनी ही उल्लेखनीय है इसकी सांस्कृतिक आभा। पालों पर अंकित गंडभेरुंड और सूर्य, धनुष पर सिंह यली की मूर्ति, और डेक पर हड़प्पा शैली का प्राचीन लंगर — ये सभी सज्जा इस यान को समय के आरपार एक जीवित इतिहास बना देते हैं। यह केवल एक जहाज नहीं, बल्कि भारत की सामुद्रिक चेतना का मूर्त रूप है, जो व्यापार, खोज और संवाद की चिरकालिक परंपरा का वाहक है।

कौंडिन्य – जिनके नाम पर इस जहाज का नाम रखा गया – वे भारत के उन वीर नाविकों में से थे, जिन्होंने समुद्र की सीमाओं को लांघकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक भारतीय संस्कृति और सभ्यता का विस्तार किया। यह नाम स्वयं में एक आह्वान है — अतीत की प्रतिष्ठा को वर्तमान की शक्ति और भविष्य की दिशा में पुनर्स्थापित करने का।



आईएनएसवी कौंडिन्य अब करवार स्थित भारतीय नौसेना के प्रतिष्ठान में स्थित होगा और जल्द ही गुजरात से ओमान तक प्राचीन समुद्री व्यापार मार्ग पर एक ऐतिहासिक यात्रा के लिए रवाना होगा। यह पथ केवल जलयात्रा नहीं, एक प्रतीकात्मक पुनर्प्रवेश है उस वैभवशाली युग में, जब भारत के जलपथ ज्ञान, कला और संवाद के सेतु थे।

यह अवसर केवल एक जहाज के जलावतरण का नहीं, वरन् एक सभ्यता के नवोत्थान का उद्घोष है।
भारत फिर से अपने समुद्रों से संवाद कर रहा है — और इतिहास इसकी गूंज सुन रहा है।

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