पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़, विशेषकर इसके मध्यवर्ती क्षेत्रों—रायपुर, बिलासपुर, धमतरी और दुर्ग-भिलाई—में भूजल स्तर में चिंताजनक गिरावट दर्ज ...
पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़, विशेषकर इसके मध्यवर्ती क्षेत्रों—रायपुर, बिलासपुर, धमतरी और दुर्ग-भिलाई—में भूजल स्तर में चिंताजनक गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट न केवल पर्यावरणीय असंतुलन का संकेत देती है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही है।
भूजल स्तर में गिरावट: एक गंभीर संकट
बिलासपुर जिले में भूजल स्तर में गिरावट की स्थिति अत्यंत गंभीर है। यहां पिछले दो वर्षों में जल स्तर में 13 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस गिरावट का मुख्य कारण अनियंत्रित बोरिंग और जल पुनर्भरण की कमी है। बिल्हा और तखतपुर ब्लॉकों में 90% से अधिक घरों में निजी बोरवेल्स पर निर्भरता है, जिससे जल स्तर और भी नीचे चला गया है।
बिलासपुर जिला प्रशासन ने इस संकट से निपटने के लिए बोरवेल ड्रिलिंग मशीनों पर GPS ट्रैकिंग सिस्टम लगाने की योजना बनाई है, ताकि अनधिकृत जल दोहन को रोका जा सके। कलेक्टर संजय अग्रवाल के अनुसार, 1990 के दशक में जहां जल स्तर 80-90 फीट पर था, वहीं अब कुछ क्षेत्रों में यह 600 फीट तक पहुंच गया है।
धमतरी: जल संकट और समाधान की दिशा में कदम
धमतरी, जो आधे छत्तीसगढ़ की जल आपूर्ति का केंद्र है, आज खुद जल संकट से जूझ रहा है। यहां भूजल स्तर में गिरावट इतनी गंभीर हो गई है कि केंद्रीय भूमि जल बोर्ड को हस्तक्षेप करना पड़ा। विशेषज्ञों ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग और कृत्रिम पुनर्भरण की आवश्यकता पर बल दिया है।
हालांकि, धमतरी प्रशासन ने GIS तकनीक का उपयोग करके जल संरक्षण में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है। तत्कालीन कलेक्टर के नेतृत्व में, जलजागर महोत्सव जैसे अभियानों के माध्यम से जनजागरूकता बढ़ाई गई और किसानों को धान की खेती के बजाय कम जल-आवश्यकता वाली फसलों की ओर प्रेरित किया गया। इन प्रयासों के लिए धमतरी को प्रधानमंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
बांधों की स्थिति: जल संकट की चेतावनी
धमतरी जिले के प्रमुख बांधों—गंगरेल, मुरुमसिल्ली, दुधावा और सोंढुर—में जल स्तर में भारी गिरावट देखी गई है। गंगरेल बांध में केवल 51% पानी बचा है, जबकि अन्य बांधों की स्थिति और भी खराब है। इन बांधों पर रायपुर, भिलाई और धमतरी की जल आपूर्ति निर्भर है, जिससे आने वाले समय में जल संकट और गहरा सकता है।
राज्यव्यापी परिदृश्य: अर्ध-संकटकालीन और संकटपूर्ण ब्लॉकों की संख्या में वृद्धि
छत्तीसगढ़ में भूजल की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। राज्य के 23 ब्लॉक 'सेमी क्रिटिकल' श्रेणी में आ चुके हैं, जबकि गुरूर और धरसीवां ब्लॉक 'क्रिटिकल' श्रेणी में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल प्रबंधन पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।
निष्कर्ष : सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता
छत्तीसगढ़ में जल संकट एक गंभीर चुनौती बन चुका है, जिसे केवल सरकारी प्रयासों से नहीं सुलझाया जा सकता। जनभागीदारी, जागरूकता और सतत जल प्रबंधन रणनीतियों के माध्यम से ही इस संकट से निपटा जा सकता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, जल पुनर्भरण, और जल संरक्षण जैसे उपायों को अपनाकर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
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