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जिसे हमने घर से विदा किया था वो जंगलों का रहनुमा बन गया"

– अब्दुल कलाम से मिलने वाला, मेरा भाई माओवादी निकला: रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर की आंखें नम रायपुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए एक बड़े एनकाउ...


– अब्दुल कलाम से मिलने वाला, मेरा भाई माओवादी निकला: रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर की आंखें नम

रायपुर : छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए एक बड़े एनकाउंटर में देश का सबसे बड़ा माओवादी नेता एन. केशवराव उर्फ बसवा राजू मारा गया। यह खबर जितनी सुरक्षा बलों के लिए सफलता की कहानी थी, उतनी ही एक परिवार के लिए टूटे सपनों की इबारत भी बन गई।

बहुत कम लोग जानते हैं कि बसवा राजू का बड़ा भाई एन. दिलेश्वर राव, भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। जब उनसे मीडिया ने संपर्क किया, तो उनके चेहरे पर गर्व और पीड़ा की दो दुनियाएं एक साथ दिखाई दीं। आंखों में आंसू लिए उन्होंने कहा—

“अभी तक भाई की डेडबॉडी नहीं मिली है... और ये सोचकर मन भारी है कि जिस भाई को मैंने किताबों में डूबा हुआ देखा था, वो बंदूक थामे जंगलों में क्यों भटका?”

दिलेश्वर राव ने यह भी बताया कि एक समय डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम से उनका परिवार मिला था, और बसवा राजू भी उस मुलाकात में शामिल था।

"कल्पना नहीं थी कि उस दिन कलाम साहब के सामने खड़े मेरे भाई के भीतर ऐसी विचारधारा पल रही थी जो लोकतंत्र को ललकारेगी," उन्होंने रुंधे गले से कहा।


वो बताते हैं—

"हमने एक ही घर में खाना खाया, एक साथ पढ़ाई की... मुझे देश की सेवा का गर्व है, लेकिन भाई ने जो रास्ता चुना वह दुखद है।"

बसवा राजू की मौत ने एक गहरी बहस को जन्म दिया है—क्या एक ही छत के नीचे पलने वाले दो भाइयों की राहें इतनी अलग हो सकती हैं? और क्या व्यवस्था की खामियों ने एक मेधावी युवक को माओवादी बना दिया?


दिलेश्वर राव की एक ही अपील है—

"भाई की डेडबॉडी हमें सौंप दी जाए। मैं उसे अंतिम विदाई देना चाहता हूं, एक भाई की तरह—not a rebel, just my brother."



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