कांकेर से दिल को छू लेने वाली खबर कांकेर : जिले में रविवार को बीएड की परीक्षा के दौरान एक भावुक दृश्य सामने आया, जिसने व्यवस्था और मानवीय...
कांकेर से दिल को छू लेने वाली खबर
कांकेर : जिले में रविवार को बीएड की परीक्षा के दौरान एक भावुक दृश्य सामने आया, जिसने व्यवस्था और मानवीय संवेदना के बीच की खाई को उजागर कर दिया। रमिता कोमा नामक एक युवती, जो एक मां भी है, परीक्षा केंद्र पहुंची तो जरूर, लेकिन मातृत्व का कर्तव्य उसे मात्र 4 मिनट देर से परीक्षा कक्ष तक ले आया। वह अपने नवजात को दूध पिला रही थी, और जैसे ही स्कूल में दूसरी पाली की परीक्षा आरंभ होने की घंटी बजी, वह दौड़ती हुई कक्षा तक पहुंची। लेकिन नियमानुसार गेट बंद हो चुका था।
सिर्फ देर नहीं, दरवाजे भी बंद हो गए:
रमिता की विनती, उसकी आंखों में आंसू और उसके हाथों में उत्तर पुस्तिका थी, पर संवेदनहीनता ने मानो अपना रूप दिखाया। परीक्षा केंद्र के कर्मचारियों ने न केवल उसे अंदर जाने से रोका, बल्कि हाथ पकड़कर बाहर तक ले गए। उसी परीक्षा केंद्र में दो अन्य छात्र भी महज कुछ मिनटों की देरी से वंचित हो गए—कुल तीन छात्रों का सपना, केवल कुछ मिनटों में, नियमों की कठोरता की भेंट चढ़ गया।
प्रशासन पर उठे सवाल:
यह घटना न केवल रमिता जैसी मां की पीड़ा को उजागर करती है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में लचीलापन न होने के प्रश्न को भी सामने लाती है। क्या कुछ मिनट की मानवीय देरी पर इस तरह से सपनों की कुर्बानी वाजिब है? क्या ऐसी परिस्थितियों के लिए कोई सहानुभूतिपूर्ण नीति नहीं होनी चाहिए?
एक मां की आवाज बनी पुकार:
रमिता कहती हैं, "मैं परीक्षा के लिए समय से पहले पहुंच गई थी, लेकिन बच्चे को दूध पिलाना मेरी मजबूरी थी। मैं दौड़कर पहुंची, पर वे सुनने को तैयार नहीं थे।"
इस घटना ने आम लोगों से लेकर प्रशासन तक, सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है—क्या नियम इंसानियत से ऊपर हो सकते हैं?
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